नवरात्रि – माँ का पावन आगमन

नवरात्रि – माँ का पावन आगमन

पहली रात – शैलपुत्री माता

धरा पर छा गया नया विश्वास का उजियारा,
पहली रात आई, माँ शैलपुत्री का सवेरा।

सफेद वस्त्रों में माँ की छवि निर्मल दिखी,
सिंह वाहन पर विराजित, शक्ति अद्भुत भिखी।

गले में कमल, हाथ में त्रिशूल थामा,
भक्तों के मन में आशा का दीपक जलाया।

शंख की गूँज से गगन भी नतमस्तक हुआ,
भक्ति की लहरों में हर हृदय गा उठा।

धैर्य और संतोष का संदेश छाया हर ओर,
शैलपुत्री का आशीष बना जीवन का सर्वोत्तम स्वर।


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दूसरी रात – ब्रह्मचारिणी माता

सत्य और साधना का मार्ग दिखलाने आईं,
दूसरी रात में ब्रह्मचारिणी की छवि सजाई।

साधना और तपस्या से जीवन को शुद्ध किया,
भक्ति और संयम से हृदय में उजाला किया।

वृक्ष की छाया सा शांति का संदेश लाईं,
अहंकार मिटाकर प्रेम की ज्योति जगाई।

भक्तों ने दीपक जलाया, मंत्र उच्चारित किए,
हर हृदय में मातृ शक्ति के गीत गाए गए।


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तीसरी रात – चंद्रघंटा माता

तेजस्विनी माँ चंद्रघंटा का रूप धारण करें,
भय और असुर के अंधकार को दूर करें।

सिंह पर विराजित, हाथों में शक्ति थामी,
धैर्य और साहस से भक्तों को सजग किया।

गगन में चाँदनी सा उजियालो का संदेश,
हर मन में उम्मीद और शक्ति का अनुभव भेष।


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चौथी रात – कुष्मांडा माता

सृष्टि की रचना की रानी माँ कुष्मांडा,
सूर्य की तरह चमकती, अज्ञान का अंधकार मिटा।

हँसी और करुणा का आलोक हर हृदय में लाया,
भक्ति और प्रसन्नता से जीवन सवाँरा।

दीपक जलाकर, फल और पुष्प चढ़ाए,
भक्तों के मन में माँ की महिमा गाए।


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पाँचवी रात – स्कंदमाता माता

संतान और ज्ञान की माता, स्कंदमाता आईं,
भक्तों के घर में सुख-समृद्धि लहराई।

सिंह पर विराजित, गोद में पुत्र लिए,
धैर्य और करुणा की अनमोल शिक्षा दी।

भक्ति से हृदय निर्मल हुआ, जीवन में आनंद आया,
माँ के आशीष से प्रत्येक दुख मिटाया।


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छठी रात – कात्यायनी माता

असत्य और अधर्म का विनाश करने आईं,
छठी रात में कात्यायनी माता आईं।

सिंह पर सवार, हाथों में शक्ति और शस्त्र लिए,
भक्तों के मन में साहस और विश्वास जगाए।

हर घर में गूँजती जयकारा “जय माता दी”,
भक्ति की लहरों ने अंधकार को हर दिया।


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सातवीं रात – कालरात्रि माता

भय का नाश करने, कालरात्रि आईं,
त्रासदी और असुरता का अंधकार मिटाई।

सिंहवाहिनी, तेजस्विनी, रक्तिम रूप में,
असत्य पर धर्म का विजय पताका फहराया।

भक्तों के हृदय में अदम्य साहस जगाया,
माँ की छवि ने हर अंधकार भगाया।


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आठवीं रात – महागौरी माता

सौंदर्य और शांति की मूर्ति महागौरी आई,
निर्मल हृदयों में माँ की ममता दिखाई।

सत्य और करुणा का दीपक जलाया,
भक्ति के मार्ग को सबके लिए सजाया।

हर घर में उल्लास, हर चेहरा मुस्कराया,
माँ की उपासना से जीवन उजियालों में आया।


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नौवीं रात – सिद्धिदात्री माता

सिद्धि और पूर्णता की माता, नौवीं रात आई,
भक्तों की हर इच्छा पूरी कर, सुख लहराई।

त्रिशूल और कमल हाथों में लिए,
भक्ति और साधना का सर्वोच्च संदेश लिए।

नवरात्रि की समाप्ति पर विजयादशमी की बेला,
असुर पर अच्छाई की जीत का उद्घोष खेला।

हर घर, हर आँगन, हर हृदय में उजियालों की छटा,
माँ के आशीष से जीवन में मंगल का वातावरण भरा।

जयकारा गूँजे – “जय माता दी” हर ओर,
नवशक्ति ने धरती को धन्य कर दिया भोर।

रूपेश रंजन

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