“मंगनी का तेल और सत्ता की गाड़ी – फिसलन भी, टक्कर भी”

 “मंगनी का तेल और सत्ता की गाड़ी – फिसलन भी, टक्कर भी”



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**“आज मेरा ड्राइवर नौ बजे घर से निकला और बारह बजे तक भी पटना नहीं पहुँचा।

डेढ़ घंटे का रास्ता तीन घंटे में नाप डाला।

पूछा तो बोला — ‘साहब, रास्ते में एक्सीडेंट हो गया था।’

अब सोचिए, जब ‘मंगनी का तेल’ गाड़ी में पड़ जाता है तो ब्रेक भी भगवान भरोसे हो जाते हैं।

ठीक वैसे ही जब ‘मंगनी का सत्ता’ जनता पर चढ़ जाता है तो पूरा मुल्क ही फिसलने लगता है।


सड़क पर जाम लगे तो कहते हैं विकास हो रहा है,

व्यवस्था पर जाम लगे तो कहते हैं सुधार हो रहा है,

और जनता का दिमाग जाम हो तो कहते हैं – सब्र रखो भाई सब्र!


हमारे देश की सड़कें और हमारी राजनीति – दोनों की हालत एक जैसी है।

सड़क पर गड्ढा हो तो जनता चुप, सरकार पर घोटाला हो तो जनता और भी चुप।

जैसे ओवरलोड ट्रक पुलिया तोड़ देता है, वैसे ही ओवरलोड सत्ता संविधान तोड़ देती है।

गाड़ी वालों के पास ‘मंगनी का तेल’ है, नेताओं के पास ‘मंगनी का सत्ता’ है।

दोनों मिलकर एक ही काम करते हैं –

गाड़ी भी फिसलाते हैं, सरकार भी फिसलाते हैं।


ड्राइवर बोला – ‘साहब, आगे किसी का एक्सीडेंट हो गया था।’

मैंने सोचा – भाई एक्सीडेंट तो यहाँ रोज हो रहे हैं,

कभी सड़क पर, कभी संसद में।

फर्क बस इतना है कि सड़क वाले एक्सीडेंट में एम्बुलेंस आती है

और संसद वाले एक्सीडेंट में प्रेस कॉन्फ़्रेंस।


अब हालात ये हैं कि जनता को सड़क पर भी खड्डे मिलते हैं,

और सत्ता में भी खड्डे – फर्क बस नाम का है।

सड़क वाला खड्डा पेट्रोल पिला देता है,

सत्ता वाला खड्डा लोकतंत्र गटका देता है।


और हाँ, ‘मंगनी का तेल’ इस पूरे खेल का असली हीरो है –

गाड़ी की रफ़्तार भी बढ़ाए,

ब्रेक की पकड़ भी छुड़वाए,

सत्ता को भी फिसलाए,

और जनता को भी समझ न आने दे कि किस ओर जाना है।


सोचिए, जब ‘मंगनी का तेल’ गाड़ी और सत्ता दोनों में घुल जाएगा

तो एक्सीडेंट भी होगा, और हर्ज़ाना भी जनता ही भरेगी।

बाकी गाड़ी वाले कहेंगे – ‘टायर फटा था’,

नेता कहेंगे – ‘सिस्टम फटा था’।

हकीकत बस इतनी है कि तेल भी उनका, सत्ता भी उनकी, और हादसा भी हमारा।”**


रूपेश रंजन... 



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