आख़िर कितनी आज़ादी चाहिए तुम्हें....
आख़िर कितनी आज़ादी चाहिए तुम्हें,
ख़ुद से भी ज़्यादा—
इतनी कि तुम
आज़ाद ही हो जाओ।
______________________
आज़ादी, आज़ादी, आज़ादी—
थक गया हूँ कमबख़्त ये सुन-सुन के।
ज़रा ग़ुलाम भी बना दो मुझे,
अपनी आज़ादी का...
__________________________
आख़िर कितनी आज़ादी चाहिए तुम्हें—
ख़ुद से भी ज़्यादा?
मुझे इतनी आज़ादी नहीं चाहिए,
कि मैं अपनों की खैरख्वाहियों से दूर हो जाऊँ।
__________________________
आख़िर कितनी आज़ादी चाहिए तुम्हें,
इतनी कि तुम
आज़ाद ही हो जाओ।
Comments
Post a Comment