आख़िर कितनी आज़ादी चाहिए तुम्हें....

आख़िर कितनी आज़ादी चाहिए तुम्हें,
ख़ुद से भी ज़्यादा—
इतनी कि तुम
आज़ाद ही हो जाओ।


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आज़ादी, आज़ादी, आज़ादी—
थक गया हूँ कमबख़्त ये सुन-सुन के।
ज़रा ग़ुलाम भी बना दो मुझे,
अपनी आज़ादी का...



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आख़िर कितनी आज़ादी चाहिए तुम्हें—
ख़ुद से भी ज़्यादा?
मुझे इतनी आज़ादी नहीं चाहिए,
कि मैं अपनों की खैरख्वाहियों से दूर हो जाऊँ।



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आख़िर कितनी आज़ादी चाहिए तुम्हें,
इतनी कि तुम
आज़ाद ही हो जाओ।

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