नहीं मिलती है मुझे वफ़ाएँ, ढूँढ़ते-ढूँढ़ते कई जनम बीते...
नहीं मिलती है मुझे वफ़ाएँ,
ढूँढ़ते-ढूँढ़ते कई जनम बीते,
सुबह की भीड़ में,
और रात की तन्हाई में भी
बस मैं ही अकेला हूँ
अपने इकरारनामा के साथ।
कहाँ चले गए प्यार करने वाले,
यहाँ तो नहीं हैं अब,
यहाँ तो बस कुछ हसरतें हैं
जो वक़्त के पाबंद हैं।
मुझे तो चाहिए सबसे परे वो मोहब्बत
जो किसी की भी मोहताज न हो,
मेरी होकर भी मेरी न हो।
मोहब्बत हो — ज़रूरत नहीं...
— रूपेश रंजन
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