राम का जीवन–यात्रा

राम का जीवन–यात्रा



रघुकुल में जन्मे, अयोध्या के लाल,
माँ कौशल्या की गोद में खिलते कमल विशाल।
चार भाई संग तू, स्नेह का दीप,
पर नियति ने तुझे बनाया धर्म का रूप अतीव।

जनकपुरी में धनुष उठा जब तूने,
सीता ने माला डाल दी, जीवन के गहने।
प्रेम और धर्म का अद्भुत संगम,
स्वर्ग में गूंजा मंगल–निनाद, पावन संगम।

पर समय ने डाला जीवन पर घाव,
कैकेयी की चाह, पिता का वचन–प्रताप।
चौदह वर्ष का वनवास मिला,
तूने हँसकर उसे भी स्वीकार किया।

वन में शबरी, वनदेव, ऋषि–मुनि मिले,
तेरे चरणों से सबके पाप धुले।
पर रावण का अभिमान जब बढ़ा,
सीता–हरण कर पाप में पड़ा।

हनुमान ने जलाई लंका की धरा,
समुद्र पर पुल बना, असंभव सदा।
रण में गरजा धर्म का सिंह,
रावण गिरा, पर तेरी करुणा अचिन्ह।

विजयी होकर लौटा जब राम,
अयोध्या गूंजी, दीपों का धाम।
रामराज्य की कथा बनी अमर,
सत्य–धर्म–त्याग का प्रकाश अपर।

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