मैं मृत्यु हूँ, यह कितना प्रासंगिक है इस बात से अधिक कि मैं जीवन हूँ।
मैं मृत्यु हूँ
मैं मृत्यु हूँ,
यह कितना प्रासंगिक है
इस बात से अधिक
कि मैं जीवन हूँ।
मुझे स्थायित्व चाहिए,
मैं सदा गतिमान नहीं हूँ।
इसीलिए मैंने स्वयं को मृत्यु माना है—
ताकि तुम्हें याद रहे
तुम्हें गतिमान रहना है,
इसीलिए तुम जीवन को चुनो।
तुम देहिक खुशियों को तवज्जो देते हो,
पर मैं आत्मिक पूर्णता की चाह रखता हूँ।
तुम्हारे सुख क्षणभंगुर हैं,
पर मेरी शांति शाश्वत है।
मैं तुम्हें रोकता नहीं,
बस याद दिलाता हूँ
कि हर पल एक अवसर है
स्वयं को पाने का।
मैं अंत नहीं,
नए प्रारंभ का द्वार हूँ।
जब तुम जीवन को चुनते हो,
तभी मेरा अर्थ पूर्ण होता है।
♥️♥️
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