श्रीकृष्ण: एक अखण्ड गान
श्रीकृष्ण: एक अखण्ड गान
गोकुल की गलियों में गूँज रहा नाम,
हर दिशा में झलक रहा श्याम।
मोर मुकुट से सजी वह छवि,
बंसी की तान में लहराती लवी।
नन्हे चरणों की रजधूलि प्यारी,
यशोदा की गोद में शांति उतारी।
माखन-चोरी में छिपा था आनंद,
हर गोपी के मन में जगता प्रचंड।
नंदबाबा के आँगन की शान,
लाल कन्हैया, सबका प्राण।
बाल्य-लीलाएँ मधुर सुहानी,
दूध-दही में रमी कहानी।
यमुना-तट पर खेल निराले,
गोप-सखा संग हँसी के छाले।
वन-वन में बंसी की टेर सुनाई,
गौओं संग गोकुल जगमगाई।
कभी उखड़े शृंगार के बाँध,
कभी दैत्यों का मिटाया साध।
पूतना का छल, त्रिनावर्त का भार,
बालकृष्ण ने किया संहार।
गोवर्धन पर्वत उठाया सहज,
गोकुल बचा लिया प्रभु ने सहज।
इंद्र का घमंड हुआ चकनाचूर,
कृष्ण दिखे सबके सिरमौर।
रास की रात, चाँदनी घनी,
गोपियों संग रची माधुरी धनी।
हर एक हृदय में बस एक श्याम,
साकार हुआ दिव्य परिनाम।
बंसी की ध्वनि में बसा परमानंद,
नाच उठा गगन, झूम उठा छंद।
आत्मा और परमात्मा का मेल,
उस रास में खुला अमर खेल।
मथुरा में कंस का अंत किया,
धर्म का पताका ऊँचा किया।
अन्याय के विरुद्ध खड़े निर्भय,
जग ने पाया सच्चा नायक अजय।
द्वारका की नगरी सजाई,
धर्म-रक्षा की राह दिखाई।
भक्त सुदामा का प्रेम निभाया,
सूखा घर को स्वर्ण बनाया।
कुरुक्षेत्र की रणभूमि महान,
अर्जुन के हृदय में छाया था शोक-गान।
तब गीता का अमृत वचन सुनाया,
जीवन का सार जग को समझाया।
“कर्म कर, फल की चिंता न कर”,
“धर्म के पथ पर चल, विचलित न कर।”
योग, भक्ति, ज्ञान का दिया प्रकाश,
बुझते हृदय में जगा विश्वास।
विश्व-रूप का जब हुआ दर्शन,
काँप उठा अर्जुन का तन-मन।
सूर्य, चंद्र, दिशाएँ सब उसमें समाई,
अनंत विराटता की छवि दिखाई।
कभी सखा बन, कभी गुरु बन,
कभी जगतपालक करुणा तन।
हर रूप में मधुर करुणा का विस्तार,
श्यामसुंदर हैं भक्तों के आधार।
मीरा ने गाया श्याम का नाम,
रैदास ने भी पाया उनका धाम।
सुदामा का आलिंगन, रुक्मिणी का प्यार,
हर भक्ति में कृष्ण ही अवतार।
आज भी जब बंसी गूँजती है,
मन की पीड़ा धुल जाती है।
गोकुल की गलियों का दृश्य उभरता,
हर आत्मा कृष्ण से जुड़ता।
हे माधव, हे जगताधार,
तेरी कृपा से ही जीवन साकार।
तेरे बिना सब शून्य प्रतीत,
तेरा स्मरण ही परम प्रीत।
हे वासुदेव, हे घनश्याम,
तेरे चरणों में है विश्राम।
हर जन्म में तेरा ही सहारा,
तेरे नाम से कटे अंधकार सारा।
बंसी की तान अमर बनी रहे,
भक्ति की गंगा हृदय में बही रहे।
तेरे चरणों में हो पूर्ण निवास,
हे प्रभु! यही है जीवन का विश्वास।
Comments
Post a Comment