ज्ञान ही मुक्ति है...

ज्ञान ही मुक्ति है... 

ज्ञान वह दीप है, जो अंधकार चीर देता है,
मन के बंधनों को, जड़ता को, विरक्ति को,
अज्ञान के कोष को वह सहज छीन लेता है।

जिसने ज्ञान पाया, उसने ब्रह्म को जाना,
ना जाति रही, ना धर्म रहा, ना भेद रहा,
ना ऊँच-नीच, ना दंभ, ना गर्व रहा।

वह जान गया –
सत्य एक है, स्वरूप अनंत है,
जल में वही, अग्नि में वही,
माटी में वही, गगन में वही।

ज्ञान ही वह नदी है,
जिसका स्रोत आत्मा में है,
और अंत सागर में मिल जाता है।
जहाँ पहुँचकर
सब नाम, सब रूप मिट जाते हैं,
और शेष रह जाता है केवल प्रकाश।

ज्ञान वह शंखनाद है,
जो भीतर के दर्पण को साफ करता है,
जहाँ कोई उपाधि नहीं,
कोई राग नहीं, कोई विराग नहीं।

ज्ञान पाने वाला
सभी का मान करता है,
क्योंकि वह देखता है
हर कण में वही चेतना।
उसके लिए
कोई उच्च नहीं, कोई नीच नहीं,
कोई सीमित नहीं, कोई असीम नहीं।

जब बुद्धि शुद्ध हो जाती है,
तो करुणा स्वभाव बन जाती है।
ज्ञानियों की दृष्टि में
हर हृदय एक ही मंदिर है,
हर आत्मा एक ही ज्योति है,
हर श्वास एक ही मंत्र है।

ज्ञान वह कुंजी है,
जो मुक्त करता है —
द्वेष के ताले से,
अहंकार के ताले से,
मोह के ताले से।

ज्ञान पाने वाला
ना किसी को छोटा मानता है
ना किसी को बड़ा;
वह सभी को
समान आदर की दृष्टि से देखता है।

हे साधक!
तू ज्ञान की राह पर चल,
ना बाहरी उपाधियों में फँस,
ना नामों में, ना रूपों में,
ना आडंबरों में, ना दंभों में।
ज्ञान की एक किरण
तेरे भीतर का अंधेरा हर लेगी।

ज्ञान ही वह चाबी है
जिससे मुक्ति के द्वार खुलते हैं;
ज्ञान ही वह जल है
जिससे जीवन के बाग सिंचित होते हैं;
ज्ञान ही वह वायु है
जो चेतना को विस्तार देती है।

और जब तू जान जाएगा,
तब तेरा अपना अस्तित्व
सबमें विलीन हो जाएगा;
ना तू बचेगा, ना मैं,
ना कोई सीमा, ना कोई बंधन,
सिर्फ सत्य, सिर्फ प्रेम,
सिर्फ मुक्त प्रकाश।

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