बापू बापू आप कहाँ चले गए



बापू बापू आप कहाँ चले गए

बापू बापू, आप कहाँ चले गए,
दुनिया इतनी कठिनाई में है।
साँसों में डर घुल गया है,
सब तरफ अशांति और युद्ध है।

धरती की कोख दुख से भर गई,
नदियाँ भी अब आँसुओं से भरी हैं।
पेड़ शिथिल, पत्तियाँ सिसकती हैं,
और आकाश काले बादलों से घिर गया।

बचपन अब खेल का नहीं,
सिर्फ भूख और भय का साथी है।
किताबें धूल में दबी हैं,
और ज्ञान की रौशनी कहीं खो गई।

शहरों की चमक भले दिखती है,
लेकिन दिलों में अँधेरा घना है।
सड़कें दौड़ और संघर्ष से भरी हैं,
और लोगों की आँखें खाली सी हैं।

प्यारी माताएँ अब डर में हैं,
बच्चे अपनी नन्हीं हँसी खो चुके।
पड़ोसी अब पराया लगता है,
और प्रेम का फूल मुरझा गया।

बापू, आप जहां चलते थे,
सत्य और अहिंसा आपके हाथों में थी।
आज यहाँ केवल हिंसा और द्वेष है,
सांपों की तरह छुपा हुआ भय है।

संसार में युद्ध की गूँज है,
शब्दों में कटुता भरी है।
हर बात में लालच झलकता है,
और हर कदम पर छल है।

जंगल अब शांत नहीं हैं,
जानवर भी डर में रहते हैं।
धरती की रूह हिल रही है,
और हर जीवन व्यथा में डूबा है।

बापू, आपकी सादगी कहाँ चली गई?
आपका विनम्रता का दीपक कहाँ गया?
आपने कहा था — सरलता ही जीवन है,
पर अब लोग भव्यता में अंधे हो गए।

महलों में महंगे कपड़े हैं,
लेकिन दिल खाली हैं।
कारों की गाड़ियाँ दौड़ रही हैं,
लेकिन आत्मा की गति रुक गई है।

सत्याग्रह का संदेश अब सिर्फ कहानी है,
नहीं तो लोग झूठ के जाल में उलझे हैं।
दीन-हीन की आवाजें दब गई हैं,
और न्याय कहीं खो गया।

बापू, आप जहाँ बैठे रहते थे,
सबको सिखाते थे संयम और शांति।
आज बच्चे लड़ रहे हैं खेल में भी,
और बड़े लड़ रहे हैं सत्ता के लिए।

आकाश में सितारे अब फीके लगते हैं,
चाँद भी उदास है।
धरती पर रौशनी कम है,
और हर दिल में अँधेरा बढ़ गया।

सत्य और धर्म अब सिर्फ नाम हैं,
और अहंकार ने जीवन पर राज कर लिया।
मित्र अब शत्रु लगते हैं,
और प्यार की मिठास कड़वी हो गई।

बापू, आप क्यों नहीं देख पा रहे?
आपकी आँखें हमें अब भी पुकारती हैं।
आपका मार्गदर्शन अब भी आवश्यक है,
लेकिन लोग केवल स्वार्थ देखते हैं।

भूख और गरीबी की पीड़ा बढ़ रही है,
किसानों के खेत सूख रहे हैं।
महिलाएँ डर के साए में जी रही हैं,
और बच्चों की हँसी अब मूक है।

आपने कहा था — प्रेम ही सच्चा विजय है।
आज लोग केवल शक्ति और पद के पीछे दौड़ रहे हैं,
सच्चाई कहीं खो गई है।

बापू, आप गए,
लेकिन आपकी आत्मा हमारे भीतर है।
आपने कहा था —
“अपने भीतर बदलाव लाओ,
तभी दुनिया बदलेगी।”

आज वही आपकी पुकार है,
हर बच्चे, हर बूढ़े, हर व्यक्ति तक पहुँचती है।
यदि हम इसे सुनें, यदि हम इसे अपनाएँ,
तो बापू, आप हमारे बीच फिर लौट आएँगे।

धरती फिर हँसेगी, नदियाँ फिर गाएँगी,
पेड़ फिर हरियाली में झूमेंगे।
बच्चों की हँसी फिर गूंजेगी,
और प्रेम हर घर की दीवारों पर लिख जाएगा।

सत्य और अहिंसा की राह पर चलने वाले,
आपके वंशज बनेंगे।
हमारे कर्म, हमारे विचार,
आपकी शिक्षाओं के साथ खिलेंगे।

बापू बापू, आप कहाँ चले गए,
हम अभी भी आपकी राह देख रहे हैं।
हमारे हाथ फैल गए हैं,
हमारे दिल आपके लिए धड़क रहे हैं।

कृपया लौटें, बापू,
फिर से हमें सिखाएँ सच्चाई, अहिंसा, और प्रेम।
फिर से हमें दिखाएँ,
कि जीवन केवल धन, सत्ता और लालच नहीं है,
बल्कि सेवा, करुणा और आत्मा की रौशनी है।

हमारी आँखों में आँसू हैं,
लेकिन हमारी आत्मा में उम्मीद भी है।
यदि हम सब मिलकर प्रेम का दीपक जलाएँ,
तो अंधकार फिर कभी धरती पर नहीं छाएगा।

बापू, हमें याद दिलाइए,
कि युद्ध और द्वेष केवल क्षणिक हैं,
और प्रेम और सत्य शाश्वत हैं।
हमें सिखाइए कि जीवन में सबसे बड़ा बल
सत्य, अहिंसा और करुणा है।

हमारे भीतर फिर से जाग उठे
सपने, जो आपने दिखाए।
हमारे हृदय में फिर से दौड़ उठे
प्रेम, जो आपने बोया।

बापू बापू, आप गए,
लेकिन आपका संदेश अमर है।
धरती, आकाश और नदियाँ गा रही हैं
आपकी शांति और सादगी का गीत।

अब हम ही आपके पदचिह्नों पर चलेंगे,
हम ही आपके आदर्शों को अपनाएँगे।
आपकी आत्मा हमारे साथ है,
और आपकी राह हमें दिखाती है
सत्य, प्रेम और अहिंसा का मार्ग।

बापू बापू, आप कहीं दूर नहीं हैं,
हमारे भीतर हमेशा जीवित हैं।
हमारे कर्मों, हमारी सोच में,
हमारी सेवा में और हमारी करुणा में।

धरती हँसेगी, नदियाँ गाएँगी,
बच्चों की हँसी फिर गूंजेगी,
और प्रेम हर घर की दीवारों पर लिख जाएगा।
बापू बापू, आप लौट आए हैं,
हमारे भीतर, हमारे साथ।



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