घर में रिकॉर्ड बना, पर जीत हाथ से फिसल गई — भारतीय महिला टीम की हार का दर्द
घर में रिकॉर्ड बना, पर जीत हाथ से फिसल गई — भारतीय महिला टीम की हार का दर्द
कभी-कभी क्रिकेट बहुत क्रूर साबित होता है — और विशाखापत्तनम में भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने वही अनुभव किया।
एसीए-वीडीसीए स्टेडियम में दर्शकों ने एक ऐसा मुकाबला देखा, जिसमें रिकॉर्ड भी बने, जोश भी दिखा, लेकिन अंत में नतीजा निराशाजनक रहा।
पहले बल्लेबाजी करते हुए भारत ने स्मृति मंधाना और प्रतिका रावल की शानदार साझेदारी की बदौलत 330 रन बनाए, फिर भी टीम इंडिया ऑस्ट्रेलिया के सामने हार गई।
स्मृति और प्रतिका की रिकॉर्ड साझेदारी
टॉस हारने के बाद भारत ने जब बल्लेबाजी शुरू की तो शुरुआत ही दमदार रही।
स्मृति मंधाना और प्रतिका रावल की जोड़ी ने शानदार 155 रनों की साझेदारी की — जो भारतीय महिला क्रिकेट के इतिहास की यादगार पारी बन गई।
मंधाना की टाइमिंग, शॉट सेलेक्शन और क्लासिक बल्लेबाजी देखते ही बन रही थी, जबकि प्रतिका रावल ने आक्रामकता और संयम का बेहतरीन संतुलन दिखाया।
भारत का स्कोर जैसे-जैसे बढ़ता गया, स्टेडियम में उत्साह चरम पर पहुँच गया। जब भारत ने 330 का आंकड़ा पार किया, ऐसा लगा जैसे यह मैच अब भारत के नाम तय है।
लेकिन ऑस्ट्रेलिया ने फिर रचा इतिहास
330 रनों के लक्ष्य का पीछा करना किसी भी महिला वनडे मैच में अब तक नामुमकिन साबित हुआ था — पर ऑस्ट्रेलिया ने असंभव को संभव कर दिखाया।
उनकी सलामी बल्लेबाजों ने शुरुआत में ही आत्मविश्वास दिखाया और धीरे-धीरे मैच का रुख अपनी ओर मोड़ लिया।
भारतीय गेंदबाज़ी में न तो वो धार दिखी और न ही फील्डिंग में कोई तेज़ी नज़र आई।
हर बार जब भारत को लगा कि अब विकेट मिलेगा, ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज़ों ने जवाब में बड़ी साझेदारी कर दी।
अंततः, ऑस्ट्रेलिया ने 6 गेंद शेष रहते ही लक्ष्य हासिल कर लिया — और इतिहास में दर्ज हो गया कि महिला वनडे में पहली बार किसी टीम ने 330 से अधिक रन का पीछा सफलतापूर्वक किया।
आखिर गलती कहाँ हुई?
भारत के पास सबकुछ था — बड़ा स्कोर, घरेलू माहौल और शानदार शुरुआत।
फिर भी हार का कारण वही पुरानी कमज़ोर कड़ी रही — गेंदबाज़ी और फील्डिंग।
स्पिनर असरहीन रहे, तेज़ गेंदबाज़ों ने डेथ ओवरों में नियंत्रण खो दिया, और फील्डिंग में कैच छूटे।
ऐसा लग रहा था जैसे 330 का स्कोर होते हुए भी टीम में वह “किलर इंस्टिंक्ट” नहीं था।
टीम ने बल्ले से तो बहादुरी दिखाई, पर गेंद से वही जोश नहीं दिखा सकी।
हार के बावजूद कुछ उजली किरणें
हालाँकि हार निराशाजनक रही, पर कुछ सकारात्मक संकेत भी मिले।
स्मृति मंधाना की फॉर्म शानदार है और प्रतिका रावल का आत्मविश्वास आने वाले वर्षों के लिए उम्मीद की किरण है।
भारत की बल्लेबाज़ी अब पहले से कहीं अधिक मज़बूत दिखती है — बस अब जरूरत है गेंदबाज़ी और फील्डिंग में उसी स्तर की स्थिरता लाने की।
इतिहास बना, पर गलत दिशा में
यह मुकाबला इतिहास में दर्ज तो ज़रूर होगा, लेकिन भारतीय दृष्टिकोण से यह कड़वा रिकॉर्ड बन गया:
- पहली बार किसी टीम ने 330+ रन का सफल पीछा किया।
- भारत ने इतना बड़ा स्कोर बनाकर भी मैच गंवाया।
यानी रिकॉर्ड बना भी तो जीत के लिए नहीं, सबक के लिए।
अब आगे का रास्ता
भारतीय महिला टीम में प्रतिभा की कमी नहीं है — कमी है निरंतरता और रणनीतिक सोच की।
ऑस्ट्रेलिया जैसी टीमों को हराने के लिए भारत को अपने गेंदबाज़ी आक्रमण, फील्डिंग स्तर और मानसिक दृढ़ता पर ज़्यादा काम करना होगा।
यह हार चेतावनी है, निराशा नहीं।
अगर इस हार से टीम सीख लेती है, तो यही दर्द आने वाले समय में ताकत बन सकता है।
निष्कर्ष
विशाखापत्तनम की रात ने दिखाया कि क्रिकेट सिर्फ़ रन बनाने का खेल नहीं है — उसे बचाना भी उतना ही ज़रूरी है।
भारत ने बल्ले से कमाल किया, लेकिन गेंद से चूक गया।
जीत हाथ से फिसल गई, पर इस हार ने बता दिया कि आगे का रास्ता कहाँ से शुरू होना चाहिए।
भारत हारा ज़रूर, लेकिन इस हार में आने वाली जीत की संभावना छिपी है।
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