गंगा बहती है, गंडक बहती है..

गंगा बहती है,
गंडक बहती है,
बाढ़ आती है,
सब बह जाता है,

पर मेरे आँसू क्यों नहीं बहते?
मेरी आँखों में बाढ़ क्यों नहीं आती?

मैं भी रोना चाहती हूँ,
मेरे आँसू भी बहना चाहते हैं — नदियों की तरह।
पर मैं नहीं रो पाती...

क्योंकि मुझे औरत बना दिया गया।
मैं शापित हूँ न —
वरना शायद नदियाँ बना देते मुझे।

मुझे दर्द पीना है,
यही मेरी किस्मत है।
नदियों की तरह,
मुझे भी दूसरों की प्यास बुझानी है।
नदी किस्मत वाली है,
प्यास तो मैं भी बुझाती हूँ,
लेकिन मेरी ज़रूरत किसी को नहीं।

सबको नदियाँ चाहिए,
पर नारी किसी को नहीं।
सबको पानी चाहिए,
पर पत्थर कोई नहीं चाहता।

कितना अजीब है —
जो बहती है, वही पूजित है,
और जो सहती है, वही तिरस्कृत।

रूपेश रंजन

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