आज उसे शहर जाना है — पति से मिलने.. (Part 2)

औरत सुबह ही तड़के उठ गई है।
आज उसे शहर जाना है — पति से मिलने।
चारों तरफ़ बादल लगा हुआ है,
इसलिए अँधेरा-सा छाया हुआ है।

ससुर और देवर के लिए खाना बनाना है,
आठ बजे बस का समय है।
क्योंकि नदी में पानी चढ़ा हुआ है,
बस उस पार मिलेगी,
और एक ही बस है।

बाहर बैलगाड़ी खड़ी है,
बैल घास चबाते हुए सिर झुकाए खड़ा है।
हल्की बूंदाबांदी हो रही है,
हवा में मिट्टी की सोंधी महक घुली हुई है।

घर के आँगन में छोटे-छोटे गड्ढों में पानी जमा है,
उसके पाँव की पायल उनमें झिलमिला रही है।
मन में जल्दी का भाव है,
पर चेहरे पर एक शांत उम्मीद —
कि आज का दिन अच्छा जाएगा,
पति से मुलाक़ात सुहानी होगी।

रूपेश रंजन...



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