उसकी चुप्पी — बारिश से भी ज़्यादा गहरी थी... (Part 3)
(Part 3)बूंदा-बांदी हो रही है।
तीन बच्चों के साथ औरत बैलगाड़ी पर चढ़ गई।
मोटरी-सब भी साथ में गाड़ी पर चढ़ा दिया गया।
दूरा पर फूल खिले हैं,
और दुभी को रौंदते हुए गाड़ी आगे बढ़ती है।
रास्ते में पानी ही पानी है,
गाँव से गुज़रकर बैलगाड़ी नदी तक पहुँचती है।
फिर नाव पर औरत और उसके तीनों बच्चों को चढ़ाया जाता है।
नाव पर भीड़ है,
बच्चे डर जाते हैं।
माँ गोद में एक बच्चे को संभालती है,
पर घूँघट भी ज़रूरी है —
गाँव के कई बुज़ुर्ग नाव पर हैं।
बस उस पार खड़ी है।
हिलती-डुलती नाव आगे बढ़ती है,
लहरों के संग झूलती हुई।
आख़िर नाव किनारे पहुँची,
नाविक ने नाव लगाई।
औरत अपने तीनों बच्चों और सामान के साथ उतरी,
लेकिन किस्मत में कहानी कुछ और ही लिखी थी —
बस निकल चुकी थी...
वो ठिठक कर खड़ी रह गई,
आँखों में उम्मीद और थकान का मिला-जुला भाव।
बूंदें अब तेज़ हो चली थीं,
और उसकी चुप्पी — बारिश से भी ज़्यादा गहरी थी।
रूपेश रंजन...
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