फिर उसी रास्ते लौटकर घर आती है... (Part 4)
फिर उसी रास्ते लौटकर घर आती है,
मन भारी है, पर चेहरे पर वही थकान भरी शांति।
पति से मिल पाने की इच्छा,
बस इच्छा बनकर ही रह जाती है।
घर पहुँचते ही वह बिना रुके काम में लग जाती है —
बच्चों को संभालती है,
भीगे कपड़े निचोड़ती है,
चूल्हे में आग सुलगाती है।
बाहर अब भी बूंदा-बांदी जारी है,
पर उसके मन में जैसे सूखा उतर आया है।
सपनों की बस निकल गई,
पर ज़िंदगी की गाड़ी —
फिर अपनी पटरी पर लौट आई है।
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