मुझसे मत बात करो, मेरी कविताएँ पढ़ो

मुझसे मत बात करो, मेरी कविताएँ पढ़ो
✍️ रूपेश रंजन


मुझसे मत बात करो,
मेरी कविताएँ पढ़ो —
क्योंकि मैंने अपने मन की हर गिरह
उन्हीं पंक्तियों में खोली है।

जो मैं बोल नहीं पाया,
वो शब्दों ने कहा है,
जो मैंने छिपाया,
वो अल्फ़ाज़ ने दिखाया है।


मेरे मुस्कुराने के पीछे
कितने आँसू छिपे हैं,
ये तुम्हें मेरी आँखों से नहीं,
मेरी कविताओं से पता चलेगा।

मैंने हर तन्हाई को
शब्दों का सहारा दिया है,
हर टूटी उम्मीद को
एक पंक्ति में सहेजा है।


मुझसे बात करोगे
तो शायद मैं चुप रह जाऊँगा,
पर मेरी कविताएँ —
वो चुप्पी नहीं जानतीं,
वो सब कह देंगी
जो मैं अब तक नहीं कह सका।


मेरी हर कविता
मेरे भीतर के एक हिस्से की सच्चाई है,
कहीं माँ की याद,
कहीं पिता की थकान,
कहीं प्रेम की अधूरी चाह,
कहीं ज़िम्मेदारियों का बोझ।


तुम अगर सच में मुझे समझना चाहते हो,
तो मुझसे नहीं —
मेरे शब्दों से मिलो।
मेरी पंक्तियों में उतरकर देखो,
वहाँ मैं हूँ —
पूरा, सच्चा, नंगा और नि:शब्द।


क्योंकि मैं अब बातचीत से थक गया हूँ,
अब सिर्फ महसूस कराना चाहता हूँ।
मेरी हर कविता —
एक अधूरी मुलाक़ात है,
जो मुझसे ज़्यादा सच्ची है।


तो मुझसे मत बात करो,
मेरी कविताएँ पढ़ो —
वहीं मिलेगा वो “मैं”
जो हर आवाज़ से परे
बस शब्दों में जीवित है।


— रूपेश रंजन

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