अच्छा लगता है...

मैं हर सुबह जल्द से जल्द उठना चाहता हूँ,
उठते ही छत की ओर दौड़ता हूँ।
मैंने छत पर पौधे लगाए हैं,
उतरते हुए सीढ़ी पर भी,
और नीचे ग्राउंड फ्लोर पर भी,
और कुछ घर के आगे भी।
मैंने कुछ बीज भी डाले हैं,
और रोज़ नए-नए बीज डालता भी हूँ।

कुछ नए पौधे आए हैं,
कुछ अब तक नहीं आए हैं,
कुछ पौधे बड़े हो रहे हैं,
कुछ मुरझा रहे हैं।

मैं रोज़ पानी डालता हूँ,
सुबह और शाम दोनों समय,
कभी-कभी कुछ ज़्यादा ही,
इस उम्मीद में कि मेरे पौधे जल्दी बड़े हो जाएँ।
कभी-कभी खाद भी डालता हूँ।

उनमें थोड़ा पानी ज़्यादा डालता हूँ,
जो मुरझा रहे होते हैं,
या जहाँ पौधे छोटे होते हैं,
या जहाँ बीज डाला होता है।

अच्छा लगता है,
जब अपने बोए हुए बीज की जगह पौधे उगते हैं,
जब पौधे बड़े होते हैं,
जब नए पत्ते आते हैं,
जब नए फूल खिलते हैं... 🌿

छठ बीत गया है,
अक्टूबर भी बीत गया है,
नवंबर आ गया है,
लेकिन बेमौसम बरसात भी आ गई है,
किसी चक्रवात की वजह से।
अच्छी बारिश हुई है,
अब मैं पौधों को पानी नहीं दे रहा हूँ।

नुक़सान हो गया है मेरे कुछ पौधों को,
समय पर शेड नहीं बना पाया था।
गमला पानी से भर गया है,
पानी निकाला तो थोड़ी मिट्टी भी बह गई है।
अच्छा नहीं लग रहा,
देखा नहीं जा रहा मुझसे।
फिर भी नुक़सान को कम करने के लिए
मैं प्रयत्नशील हूँ...

– रूपेश रंजन 🌱

Comments