जब वो मेरे बारे में सोचेगी...
जब वो मेरे बारे में सोचेगी,
तब तक निकल चुका होऊँगा मैं।
शायद किसी स्टेशन की भीड़ में,
या किसी अजनबी शहर की सड़कों पर,
जहाँ मेरा कोई नाम नहीं,
कोई पहचान नहीं,
बस एक सफ़र है, जो जारी है —
बिना मंज़िल, बिना उम्मीद के।
जब तक मुझे देखने को सोचेगी,
मैं शहर छोड़ चुका होऊँगा।
वो गलियाँ, वो मोड़, वो चौराहा,
जहाँ हम कभी साथ चले थे,
अब वहाँ मेरी परछाई भी नहीं होगी।
किसी हवा के झोंके में,
शायद मेरी कोई याद अटक जाए,
पर मैं तब तक बहुत दूर निकल चुका होऊँगा।
जब तक मुझे मिलने को सोचेगी,
मैं बहुत दूर आ चुका होऊँगा।
शायद किसी नई सुबह में,
या किसी पुराने दर्द के पार,
जहाँ अब दिल को चैन है —
ना किसी का इंतज़ार,
ना किसी के लौट आने की आस।
नहीं पता है मेरे बारे में उसे,
वो बस उतना ही जानती है,
जितना मैंने बताया था,
पर असली मैं तो कभी बताया ही नहीं।
नहीं जानती कि मेरे मुस्कुराने के पीछे,
कितनी रातें रोकर गुज़रीं,
कितने सवाल बिना जवाब रह गए।
वो तब पूछ नहीं पाई,
मुझे रोक नहीं पाई।
शायद उसने सोचा होगा,
मैं फिर लौट आऊँगा,
या शायद उसे यक़ीन ही नहीं हुआ
कि मैं सच में चला जाऊँगा।
अब याद करके भी कुछ नहीं कर सकती,
बस यही यक़ीन कर सकती है —
कि शायद मैं ही ग़लत था,
या वक्त ही बेरहम था।
शायद ये कहानी अधूरी ही रहनी थी,
क्योंकि कुछ कहानियाँ पूरी हों,
तो अपना जादू खो देती हैं।
अब जब वो मेरी याद में खोएगी,
मैं किसी और आसमान के नीचे होगा,
किसी और शहर की धूप में,
अपने अतीत की राख से
एक नया "मैं" बना रहा होऊँगा।
और अगर कभी वो दुआ में मेरा नाम ले भी ले,
तो बस इतना ही कहूँगा दिल में —
“तू देर से सही, पर याद तो आई।”
रूपेश रंजन
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