ब्रह्मांड — गति, धर्म और चेतना

ब्रह्मांड — गति, धर्म और चेतना
— रूपेश रंजन

यह ब्रह्मांड,
न तो पूर्ण रूप से बिखरा हुआ है,
न ही पूरी तरह सजा-संवरा।
यह चल रहा है —
एक प्रक्रिया में,
एक प्रवाह में,
जहाँ संयोग और व्यवस्था
दोनों साथ नाचते हैं।

कुछ पत्ते हवा में उड़ते हैं,
कुछ जड़ों में जमे रहते हैं।
कुछ तारे दिशा बताते हैं,
कुछ बस टिमटिमाते हैं।

यह सृष्टि किसी एक नियम की दासी नहीं,
पर अराजकता की भी रानी नहीं।
यह बीच का संगीत है —
जिसमें ताल भी है,
और विराम भी।

हर अंश में एक अर्थ है,
पर हर अर्थ अधूरा है।
क्योंकि ब्रह्मांड
कभी समाप्त नहीं होता,
वह बस विकसित होता है —
एक प्रक्रिया में,
अनवरत, अनगिनत, अनदेखा।

पर इस प्रक्रिया में,
होना चाहिए चेतना और धर्म।
हर गति में न्याय का स्पर्श,
हर परिवर्तन में सच्चाई का प्रतिबिंब।
यदि हम अंधाधुंध चलते रहेंगे,
तो केवल अराजकता ही पनपेगी।

मानव भी इस नृत्य का भाग है,
अपने कर्मों की पहचान और
अपने विचारों की साफ़-सुथरी चादर के साथ।
न्याय और सच्चाई से प्रेरित कदम,
सृष्टि की लय में घुल जाएं।

यह ब्रह्मांड केवल गति नहीं,
यह चेतना का विस्तार है।
और चेतना तभी सुन्दर है,
जब उसमें धर्म और न्याय की किरण हो।

पत्तों की गिरावट में भी संगीत हो,
तारों की चमक में भी संदेश।
हर नदी, हर समुद्र, हर पर्वत,
सिर्फ अपना अस्तित्व नहीं है,
बल्कि जीवन का मार्ग भी बताते हैं।

हमारे विचार, हमारे कर्म,
सिर्फ हमारे नहीं,
वे ब्रह्मांड की लय का हिस्सा हैं।
हर निर्णय, हर कर्म,
इस प्रक्रिया को आकार देता है,
इसे दिशा देता है,
इसे अर्थपूर्ण बनाता है।

यदि हम सजग नहीं हुए,
तो अराजकता फैल जाएगी।
यदि हम न्याय और धर्म का मार्ग अपनाएँ,
तो यह प्रक्रिया सुंदर और स्थायी बन जाएगी।

सूर्य की किरणों में भी न्याय हो,
चाँद की शांति में भी धर्म हो।
धरती की हर बूंद में चेतना हो,
आकाश की हर हवा में समानता हो।

हम मानव हैं, पर यह ब्रह्मांड भी मानवता का आईना है।
जहाँ हम स्वयं को पहचानेंगे,
वहाँ सृष्टि स्वयं को समझेगी।
हमारे भीतर की लहरें,
ब्रह्मांड की लहरों के साथ मिलकर
संगीत रचेंगी, नृत्य करेंगी।

धैर्य, सहनशीलता, और सजगता,
इनसे ब्रह्मांड का स्वरूप निखरता है।
और जब धर्म की मशाल जलती है,
तो अंधकार भी रास्ता दिखाता है।

संसार की हर प्रक्रिया में,
एक संतुलन है —
अव्यवस्था और व्यवस्था के बीच,
अंधकार और प्रकाश के बीच,
अज्ञान और चेतना के बीच।

हमें इसे समझना है,
और इसमें सही योगदान देना है।
न केवल अपने लिए,
बल्कि आने वाली पीढ़ियों और
संपूर्ण सृष्टि के लिए।

क्योंकि ब्रह्मांड न केवल चलता है,
वह सिखाता है,
वह प्रकट करता है,
वह प्रतीक बनता है,
उसका हर अंश संदेश देता है।

हमारा कर्तव्य है
इस संदेश को समझना,
इस मार्ग को अपनाना,
और अपने कर्मों से
इस प्रक्रिया को दिशा देना।

और इसी जागरूकता में
सत्य और धर्म का प्रकाश जगमगाता है।
इस प्रकाश में
हर जीवन, हर चेतना,
सुरक्षित और स्वतंत्र है।

इसलिए, ब्रह्मांड केवल अनुभव नहीं,
यह शिक्षा भी है।
यह प्रक्रिया अनंत है,
लेकिन अर्थपूर्ण है।
यह अनदेखा है,
लेकिन हम इसे देख सकते हैं।
यह अनवरत है,
लेकिन हम इसमें योगदान कर सकते हैं।

हमारा धर्म यही है —
चेतना के साथ,
सजगता के साथ,
सत्य और न्याय के साथ
इस प्रक्रिया का हिस्सा बनना।

क्योंकि ब्रह्मांड सिर्फ चलता नहीं है,
वह सिखाता है,
वह दिशा देता है,
वह सुंदर बनता है —
हमें उसे सुंदर बनाने के लिए।

रूपेश रंजन

Comments