अच्छा लगता है...

मैं हर सुबह जल्दी से जल्दी उठना चाहता हूँ,
उठते ही छत की ओर दौड़ता हूँ।
मैंने छत पर पौधे लगाए हैं,
उतरते हुए सीढ़ी पर भी,
और नीचे ग्राउंड फ्लोर पर भी,
कुछ घर के आगे भी लगाए हैं।
मैंने कुछ बीज भी डाले हैं,
और रोज़ नए-नए बीज डालता भी हूँ।

कुछ नए पौधे उग आए हैं,
कुछ अब तक नहीं निकले हैं,
कुछ पौधे बड़े हो रहे हैं,
कुछ मुरझा रहे हैं।

मैं रोज़ पानी डालता हूँ,
सुबह और शाम दोनों समय,
कभी-कभी थोड़ा ज़्यादा ही,
इस उम्मीद में कि मेरे पौधे जल्दी बड़े हो जाएँ।

उनमें थोड़ा पानी ज़्यादा डालता हूँ,
जो मुरझा रहे होते हैं,
या जहाँ पौधे छोटे होते हैं,
या जहाँ बीज अभी-अभी डाला होता है।

अच्छा लगता है,
जब अपने बोए हुए बीज की जगह पौधे निकल आते हैं,
जब पौधे बड़े होते हैं,
जब नए पत्ते आते हैं,
जब नए फूल खिलते हैं… 🌿✨

रूपेश रंजन

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