एक समंदर
एक समंदर
– रूपेश रंजन
एक समंदर
और मैं एक नदी।
समंदर जिसमें सबको मिलना है,
मैं नदी जिसे समंदर में मिलना है।
मेरी तक़दीर है मिलना,
समंदर की तक़दीर है अपने अंदर मिलाना।
बात यहीं तक नहीं है —
कैसे मिलेंगे,
ये भी एक बात है।
एक ही रास्ते से होकर,
या कई रास्तों से होकर।
समंदर में सब एक हैं,
वहाँ किसी का दो रंग नहीं।
रास्ते दिखते हैं,
पर समंदर में सब मिट जाते हैं।
बात वही है —
रास्ते नहीं मिटेंगे,
दिखेंगे,
पहचाने जाएंगे,
याद किए जाएंगे।
हमें देखना है —
कैसे जाएंगे,
कैसे पहुँचेंगे,
एक ही रास्ते से,
या कई रास्तों से होकर...
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