धैर्य और धर्म का अनिवार्य बीज।

यह ब्रह्मांड,
न केवल चलता है अपने प्रवाह में,
बल्कि इसके भीतर होना चाहिए
धैर्य और धर्म का अनिवार्य बीज।

हर गति में न्याय का स्पर्श हो,
हर परिवर्तन में चेतना का प्रतिबिंब।
यदि हम अंधाधुंध चलते रहेंगे,
तो केवल अराजकता ही पनपेगी।

इस प्रक्रिया में
मानव को भी भाग लेना है —
अपने कर्मों की पहचान के साथ,
अपने विचारों की साफ़-सुथरी चादर के साथ।

न्याय और सच्चाई से प्रेरित कदम,
सृष्टि की लय में घुल जाएं।
तभी पत्तों की गिरावट में भी संगीत होगा,
तारों की चमक में भी संदेश।

क्योंकि ब्रह्मांड केवल गति नहीं,
यह चेतना का भी विस्तार है।
और चेतना तभी सुन्दर है,
जब उसमें धर्म और न्याय की किरण हो।

यह मार्ग कठिन है, पर आवश्यक है —
अव्यवस्था और व्यवस्था के बीच,
हमारी जिम्मेदारी यही है,
कि हम इसे सही दिशा दें,
सजग होकर, सचेत होकर,
और धर्म की मशाल जलाए रखते हुए।

रूपेश रंजन

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