प्रेम था, निश्चित ही प्रेम था..

प्रेम था,
निश्चित ही प्रेम था,
मैं दावे से कह सकता हूँ।

अब रिश्ता है,
प्रेम है या नहीं, पता नहीं।
नींव बह गई है समय के बहाव में,
बस मकान रह गया है।

उसने बुलाया मुझे मिलने को,
मैं नहीं गया।

कुछ ऐसा हुआ बीच में...
मन तो करता है रिश्ता रहे,
लेकिन बिना मिले ही।

आप जब दूर जाते हैं,
तो बहुत कुछ छोड़ जाते हैं।
सब कुछ वैसे ही रहता है,
लेकिन आप से दूर रहता है।

सब कुछ आपकी मर्ज़ी से नहीं होगा,
सच कहूँ,
तो कुछ भी आपकी मर्ज़ी से नहीं होगा।

आपके पास कई रास्ते होंगे,
उनमें से किसी एक को चुनेंगे,
दूसरे रास्ते उसी क्षण आपसे हमेशा के लिए बंद हो जाएँगे।
और उन रास्तों पर होंगे
आपके वे दोस्त,
जिनसे आपने अलग रास्ते चुने थे।

दुखी मत होइए,
ऐसा ही होता है।
आप दुखी नहीं हो सकते,
क्योंकि आपका दुख उस ख़ुशी से बहुत छोटा है,
जो ख़ुशी आपको अपना रास्ता चुनने पर मिली है... 🌿

रूपेश रंजन

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