न्याय की छात्रा, अन्याय की शिकार: कोलकाता लॉ कॉलेज की छात्रा के साथ बलात्कार और वीडियो की धमकी

न्याय की छात्रा, अन्याय की शिकार: कोलकाता लॉ कॉलेज की छात्रा के साथ बलात्कार और वीडियो की धमकी

तारीख: 3 जुलाई, 2025


भारत एक बार फिर उस जगह आ खड़ा हुआ है जहाँ एक बेटी की चुप्पी को उसकी मजबूरी समझा जा रहा है।
कोलकाता के एक लॉ कॉलेज की छात्रा के साथ जो हुआ, वह सिर्फ एक बलात्कार नहीं था — यह विश्वासघात था, और उस पर एक मानसिक कैद की सजा भी।

आरोपी मोनोजित मिश्रा उर्फ ‘मैंगो’ ने पीड़िता के साथ न केवल बलात्कार किया, बल्कि उस भयावह कृत्य का वीडियो बनाकर उसे धमकाया कि यदि वह पुलिस के पास गई, तो वह वीडियो सार्वजनिक कर देगा।

"तुम पुलिस के पास नहीं जाओगी... वरना ये वीडियो सबको भेज दूँगा," – यह कथन किसी धमकी से अधिक एक मानसिक कैद की सजा जैसा है।




डर: बलात्कार की पहली सजा

बलात्कार केवल शारीरिक नहीं होता — यह मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक रूप से भी व्यक्ति को तोड़ देता है। और जब आरोपी उस पीड़ा को तकनीक के ज़रिए उकेरकर पीड़िता को हमेशा के लिए चुप रहने पर मजबूर कर दे — तो यह केवल एक अपराध नहीं, बल्कि समाज की आत्मा पर हमला है।

इस मामले में वीडियो को 'हथियार' बनाया गया — न कि सबूत के रूप में न्याय के लिए, बल्कि चुप्पी के लिए।


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क्या हमारे कॉलेज वास्तव में सुरक्षित हैं?

यह मामला और भी चौंकाने वाला इसीलिए है क्योंकि पीड़िता खुद कानून की छात्रा थी। यदि एक शिक्षित, कानूनी जानकार छात्रा असुरक्षित है, तो गांव, कस्बों और छोटे शहरों की आम लड़कियों का क्या?

क्या हमारे शिक्षण संस्थान, खासकर लॉ कॉलेज, महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं रह गए हैं?



डिजिटल ब्लैकमेल: एक नया अपराध, एक नई चुप्पी

भारत में आईटी एक्ट की धारा 66E और 67A के तहत ऐसे अपराधों के लिए कड़े प्रावधान हैं। IPC 376 बलात्कार के लिए है और यदि पीड़िता नाबालिग हो, तो POCSO लागू होता है।

लेकिन असली सवाल यह है कि कानून होने के बावजूद भी पीड़िता चुप क्यों रही?

क्योंकि समाज दोषी को नहीं, पीड़िता को शर्मिंदा करता है।



जब चुप्पी को सामान्य मान लिया जाए

सबसे गंभीर बात यह है कि भारत में अब बलात्कार के बाद चुप रह जाना सामान्य माना जाने लगा है।
“बात मत फैलाओ”, “परिवार की इज्ज़त का सवाल है”, “भविष्य बर्बाद हो जाएगा”— ये वाक्य हर पीड़िता को सुनने पड़ते हैं।

लेकिन सवाल यह है — क्या बलात्कारी का भविष्य बचाने के लिए पीड़िता की आत्मा को मार देना सही है?



अब क्या होना चाहिए?

1. आरोपी को फास्ट ट्रैक कोर्ट में सज़ा दी जाए — ताकि पीड़िता को बार-बार बयान ना दोहराना पड़े।


2. पीड़िता की पहचान और सुरक्षा सुनिश्चित की जाए — हमेशा के लिए।


3. डिजिटल अपराधों के लिए स्पेशल साइबर टीमों की जरूरत है जो ब्लैकमेल और वीडियो के ज़रिए हो रहे अपराधों पर नज़र रखें।


4. कॉलेजों में महिला सुरक्षा सेल और मानसिक स्वास्थ्य सहायता उपलब्ध कराई जाए।


5. सबसे ज़रूरी: शर्म अपराधी को आनी चाहिए, पीड़िता को नहीं।






समाप्ति के विचार

मोनोजित उर्फ 'मैंगो' को केवल आरोपी के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। उसे एक प्रतीक बनाना चाहिए — उस समाज का जो चुप्पी को 'सम्मान' मानता है और बलात्कार को 'संवेदनशील मामला' कहकर टालता है।

हर बार जब कोई बेटी चुप हो जाती है — एक और मोनोजित ताकतवर बन जाता है।

अब वक्त है आवाज़ उठाने का।



📞 यदि आप पीड़िता हैं या किसी को जानते हैं जो ऐसी स्थिति में है, तो मदद के लिए संपर्क करें:

महिला हेल्पलाइन: 181

पुलिस सहायता: 1091




> "चुप मत रहो — तुम्हारी आवाज़ किसी और को बचा सकती है।"

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