प्रेम में अस्वीकृति और सहिष्णुता का असली रूप



प्रेम में अस्वीकृति और सहिष्णुता का असली रूप

✍️ रूपेश रंजन 


"प्रेम में अस्वीकृति के बाद,
जो नजर तक न मिलाएं,
वो लोग सराहनीय हैं...
क्योंकि वो प्रेम का नहीं,
उस निर्णय का भी सम्मान करते हैं!"

आज के दौर में प्रेम की परिभाषा जितनी सरल दिखती है, व्यवहार में उतनी ही जटिल हो चुकी है। सोशल मीडिया, त्वरित संवाद और सतही जुड़ाव के इस युग में लोग प्रेम को अधिकार की तरह देखने लगे हैं — जहाँ ना सुनना अपमान लगता है, और दूरी सहना हार।


प्रेम: एक अधिकार नहीं, एक प्रस्ताव है

जब कोई किसी को पसंद करता है या प्रेम का प्रस्ताव देता है, तो वह उस व्यक्ति को एक भावना सौंपता है, न कि कोई दावा करता है। लेकिन दुखद यह है कि आज कई लोग अस्वीकार को बर्दाश्त नहीं कर पाते। परिणामस्वरूप हम ऐसे मामले देखते हैं जहाँ प्रेम के इनकार पर हिंसा, बदला या प्रताड़ना जैसे भयावह कृत्य सामने आते हैं।


अस्वीकृति: जहाँ प्रेम की परिपक्वता दिखती है

वह व्यक्ति जो प्रेम में अस्वीकृति के बाद भी चुपचाप अपनी राह पकड़ लेता है, सामने वाले की मर्जी का सम्मान करता है, दरअसल वही सच्चे प्रेम की गहराई को समझता है। नज़रें न मिलाना, दूरी बना लेना — यह उसकी कमजोरी नहीं, उसका आत्मसम्मान और संवेदनशीलता है।

वह किसी को खोकर भी खुद को नहीं खोता।
वह उस ना को नफरत में नहीं, समझदारी में बदलता है।


आधुनिक युग की विडंबना

आज के समय में प्रेम, स्वाभाविक भावनाओं से हटकर एक प्रतिस्पर्धा और स्वामित्व की दौड़ बन चुका है। जब कोई व्यक्ति "ना" कहता है, तो सामने वाला इसे अपनी ‘हार’ समझता है, जबकि वास्तव में यह एक स्वतंत्र निर्णय है।

यही कारण है कि प्रेम में हिंसा, पीछा करना, ब्लैकमेल या सोशल मीडिया पर बदनामी जैसे विकृत रूप देखने को मिलते हैं।


समाज को क्या करना चाहिए?

  1. भावनात्मक शिक्षा: स्कूलों और कॉलेजों में रिश्तों और अस्वीकृति को लेकर जागरूकता जरूरी है।
  2. मानसिक समर्थन: अस्वीकार को झेलने वालों के लिए परामर्श व संवाद की सुविधा होनी चाहिए।
  3. सांस्कृतिक बदलाव: ऐसे व्यवहार को सामान्य और सराहनीय बनाया जाए जहाँ लोग ‘ना’ को गरिमा से स्वीकारें।

निष्कर्ष: प्रेम का सच्चा सम्मान

जिस प्रेम में सामने वाले की मर्जी और स्वतंत्रता का सम्मान हो, वही प्रेम वास्तव में पवित्र है।
जो लोग अस्वीकार होने पर भी मौन रह जाते हैं, किसी से कोई सवाल नहीं करते, बस खुद से ही संवाद करते हैं — वही प्रेम को सही अर्थों में जीते हैं।

प्रेम की सबसे बड़ी परीक्षा, ‘ना’ को स्वीकारना है।
और जो उस परीक्षा में मौन रहकर उत्तीर्ण होता है, वही सच्चा प्रेमी कहलाता है।


✍️ रूपेश रंजन


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