रिश्ते: एक दिन के हों या ज़िंदगी भर के — मेहनत तो करनी ही पड़ती है



रिश्ते: एक दिन के हों या ज़िंदगी भर के — मेहनत तो करनी ही पड़ती है

✍️ By Rupesh Ranjan

रिश्ते... ये शब्द जितना छोटा है, इसका मतलब उतना ही गहरा।
चाहे कोई रिश्ता सिर्फ एक दिन का क्यों न हो, या दो दिन का हो, या फिर पूरी ज़िंदगी का — उसे निभाने के लिए मेहनत करनी ही पड़ती है। और ये मेहनत सिर्फ टाइम देने की नहीं होती, बल्कि दिल से जुड़ने की होती है।

सिर्फ साथ रहना रिश्ता नहीं होता...

कई लोग सोचते हैं कि रोज़ बात कर लेने से, कुछ मीठे शब्द बोल देने से या एक-दो बार साथ घूम लेने से रिश्ता निभा लिया। लेकिन सच्चाई ये है कि हर रिश्ता एक पौधे जैसा होता है, जिसे रोज़ ध्यान, समर्पण और भरोसे की ज़रूरत होती है।

अगर आप हर समय सिर्फ खुद को सही साबित करने में लगे रहेंगे, चालाकियाँ करते रहेंगे, ओवरस्मार्ट बनते रहेंगे — तो रिश्ता बोझ बन जाएगा।
रिश्ते में ‘मैं’ से ज़्यादा ज़रूरी है ‘हम’। और जब तक ये ‘हम’ नहीं बनता, तब तक रिश्ता सिर्फ दिखावा ही रहता है।

निभा नहीं सकते? तो अकेले जीना सीखो...

जी हां, ये बात कड़वी है, पर सच्ची। अगर आपको रिश्ते निभाने नहीं आते, अगर आप हर बार बहाना बनाते हैं या सिर्फ अपने हिसाब से जीते हैं — तो फिर अकेले चलना बेहतर है।

क्योंकि सामने वाला भी एक इंसान है, उसकी भी भावनाएं हैं। अगर आप उसे बार-बार नज़रअंदाज़ करेंगे, तो एक दिन वो भी चला जाएगा — और तब बचेगा सिर्फ पछतावा।

इंसान को रिश्ते चाहिए... क्योंकि हम पत्थर नहीं हैं

हम भले ही खुद को कितना भी मज़बूत दिखाएं, लेकिन हक़ीक़त ये है कि इंसान को रिश्ता चाहिए होता है — कोई जिससे वो अपने दिल की बात कह सके, जो उसकी ख़ामोशी को भी समझ सके।

हम सबको कोई ऐसा चाहिए जो हमें सिर्फ हमारे अच्छे दिनों में नहीं, बल्कि टूटे हुए पलों में भी थामे। यही रिश्ते की असली परिभाषा है।


अंत में...

रिश्ते वक्त से नहीं, जज़्बातों से बनते हैं।
निभाने वाले हों तो हर रिश्ता खूबसूरत है — वरना तो सबसे अच्छा इंसान भी अकेलेपन में डूब जाता है।

इसलिए चाहे रिश्ता एक दिन का हो या पूरी उम्र का — उसे निभाने के लिए सच्चा दिल, सच्ची नीयत और थोड़ा धैर्य चाहिए। वरना कोई दूसरा विकल्प नहीं — फिर अकेलापन ही आपकी सच्चाई बन जाता है।

– रूपेश रंजन




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