कोई नहीं मरता: अंत से परे आत्मा की यात्रा



🕊️ कोई नहीं मरता: अंत से परे आत्मा की यात्रा

हम मृत्यु को जीवन का अंत मानते हैं — एक विदाई, एक ख़ामोशी, एक अंधकार जो जीवन की रौशनी को निगल लेता है। पर सच्चाई इससे कहीं गहरी और कोमल है।
हम जिसे मृत्यु कहते हैं, वह केवल रूप का परिवर्तन है, अस्तित्व का नहीं।


🌿 भगवद गीता की अमर वाणी

जब कुरुक्षेत्र में अर्जुन शोक से व्याकुल थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा का गूढ़ रहस्य बताया:

"न जायते म्रियते वा कदाचिन् नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥"

भगवद गीता 2.20

अर्थ:
आत्मा न तो कभी जन्म लेती है, न मरती है। न यह कभी उत्पन्न हुई, न कभी समाप्त होगी। यह अजन्मा, शाश्वत, सनातन और अविनाशी है। शरीर के नष्ट होने पर भी आत्मा नष्ट नहीं होती।

यही वह बोध है जो मृत्यु के भय को समाप्त करता है। आत्मा अनंत है, शरीर केवल उसका वस्त्र है।
मृत्यु केवल वस्त्र बदलने जैसा है। आत्मा कभी नहीं मरती।


🧠 स्मृतियाँ: अमरता की आवाज़

हम सोचते हैं कि कोई चला गया, पर वे हमारे भीतर जीवित रहते हैं —
किसी गीत में, किसी तस्वीर में, किसी किताब के कोने पर लिखे उनके शब्दों में।

माँ की बातों में, दादी की कहानियों में, पिता की चुप्पियों में,
प्रेमी की आँखों में जो कभी झाँका था, वह आज भी झांकता है स्मृति में।

कभी-कभी लगता है —
वे गए ही नहीं। बस अब दिखाई नहीं देते।


🔥 ऊर्जा कभी नष्ट नहीं होती

विज्ञान भी कहता है — ऊर्जा न तो उत्पन्न होती है, न नष्ट होती है।
तो फिर किसी व्यक्ति की आत्मा, उसकी भावनाएँ, उसका प्रेम — कहाँ जाता है?

वह रूप बदलता है —
कभी किसी प्रेरणा में,
कभी किसी मौन में,
कभी किसी सपना बनकर लौट आता है।


💬 शोक: वह प्रेम है जो अब शब्द नहीं ढूँढ पाता

हम रोते हैं क्योंकि हमने उन्हें खोया नहीं,
बल्कि वे अब उस रूप में नहीं हैं, जिसमें हम उन्हें छू सकते थे।

शोक प्रेम है जो अब दिशा ढूंढ रहा है —
वह फिर कविता में, प्रार्थना में, नज़रों के आँसुओं में रूप लेता है।

और फिर धीरे-धीरे हम समझने लगते हैं:
मृत्यु अंत नहीं है, केवल परिवर्तन है।


🌺 जीवन का सच्चा उत्तराधिकार

हमें इस संसार में ऐसा जीवन जीना चाहिए कि जब हम जाएँ —
हमारा प्रेम, हमारे विचार, हमारी करुणा — लोगों के जीवन में गूंजते रहें।

जीवन क्षणिक है,
पर संवेदनाएँ अनंत हैं।

श्रीकृष्ण कहते हैं —

"वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-
न्यन्यानि संयाति नवानि देही॥"

भगवद गीता 2.22

जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीर को त्यागकर नया शरीर धारण करती है।


🌌 निष्कर्ष: कोई नहीं मरता

जब कोई प्रियजनों से विदा ले, तो शोक करें — पर साथ में यह भी याद रखें:

"कोई नहीं मरता।
वे बस बदल जाते हैं —
रूप में, दिशा में, परन्तु कभी अस्तित्व में नहीं।
आत्मा नित्य है, प्रेम अमर है।"



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