130वाँ संविधान संशोधन विधेयक : महिला आरक्षण और उससे जुड़ी आलोचनाएँ



130वाँ संविधान संशोधन विधेयक : महिला आरक्षण और उससे जुड़ी आलोचनाएँ

भारतीय लोकतंत्र में समान प्रतिनिधित्व हमेशा से एक गंभीर चुनौती रही है। संसद और विधानसभाओं में महिलाओं की संख्या 15% से भी कम रही है, जबकि भारत की आधी से अधिक आबादी महिलाएँ हैं। इसी असंतुलन को दूर करने के लिए संसद ने हाल ही में 130वाँ संविधान संशोधन विधेयक पारित किया है, जिसे आम तौर पर महिला आरक्षण विधेयक कहा जा रहा है। यह विधेयक संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% सीटें आरक्षित करता है।

हालाँकि, जहाँ इसे ऐतिहासिक और प्रगतिशील कदम कहा जा रहा है, वहीं कई राजनीतिक नेताओं और दलों ने इसकी आलोचना और शंकाएँ भी जताई हैं।


विधेयक के मुख्य प्रावधान

  • लोकसभा और राज्य विधानसभाओं की एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी।
  • यह आरक्षण अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की आरक्षित सीटों पर भी लागू होगा।
  • यह संशोधन जनगणना और परिसीमन (Delimitation) प्रक्रिया पूरी होने के बाद लागू होगा।
  • आरक्षण की अवधि प्रारंभ में 15 वर्षों के लिए होगी।

समर्थन के तर्क

  • महिलाओं को समान अवसर और प्रतिनिधित्व मिलेगा।
  • नीतिनिर्माण में महिला दृष्टिकोण शामिल होगा।
  • लोकतंत्र अधिक समावेशी और प्रतिनिधिक बनेगा।
  • पंचायत स्तर पर महिला आरक्षण की सफलता अब बड़े स्तर पर दिखेगी।

आलोचनाएँ और आपत्तियाँ

1. लागू करने में देरी की आशंका

कई नेताओं ने यह कहा है कि जब तक नई जनगणना और परिसीमन की प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तब तक यह कानून लागू नहीं होगा। इसका अर्थ यह है कि इसका प्रभाव 2029 के आम चुनावों से पहले दिखना कठिन है।

  • अखिलेश यादव (समाजवादी पार्टी) ने कहा कि यह केवल “महिला आरक्षण का वादा” है, “उसकी डिलीवरी नहीं”

2. ओबीसी और अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व की अनदेखी

कुछ दलों का तर्क है कि इस विधेयक में महिलाओं को तो आरक्षण दिया गया है, लेकिन ओबीसी (Other Backward Classes) महिलाओं और अल्पसंख्यक वर्ग की महिलाओं के लिए कोई अलग प्रावधान नहीं है।

  • तेजस्वी यादव (राष्ट्रीय जनता दल) और नीतीश कुमार (जेडीयू) ने कहा कि जब तक ओबीसी महिलाओं के लिए आरक्षण तय नहीं होगा, तब तक यह अधूरा कदम है।
  • मायावती (बहुजन समाज पार्टी) ने इसे “सीमित और असमान” करार दिया।

3. राजनीतिक दिखावा या वास्तविक सुधार?

कई नेताओं ने आरोप लगाया कि सरकार ने इस विधेयक को वास्तविक सुधार की बजाय राजनीतिक लाभ के लिए पास किया है।

  • कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने इसका समर्थन तो किया, लेकिन यह भी कहा कि इसे “बिना देरी लागू किया जाए”
  • विपक्ष का कहना है कि सरकार ने इसे “लोकसभा चुनाव से पहले वोट बैंक साधने की रणनीति” के रूप में लाया है।

4. टोकनिज़्म का खतरा

कुछ विद्वानों और नेताओं का मानना है कि यदि महिलाओं को केवल आरक्षित सीटों पर नामित कर दिया जाए, तो हो सकता है कि वास्तविक राजनीतिक नियंत्रण अब भी पुरुषों के हाथ में ही रहे। इसे “सरपंच पति मॉडल” जैसी स्थिति से जोड़ा जा रहा है, जैसा कि कई पंचायतों में देखने को मिला है।


लोकतांत्रिक विमर्श पर प्रभाव

यह सच है कि यह विधेयक भारतीय राजनीति में नए युग की शुरुआत करता है, लेकिन आलोचनाएँ यह भी दिखाती हैं कि लोकतंत्र में केवल आरक्षण देना पर्याप्त नहीं है। असली चुनौती यह होगी कि महिलाएँ वास्तव में स्वतंत्र और प्रभावी नेतृत्व की भूमिका निभाएँ।


निष्कर्ष

130वाँ संविधान संशोधन विधेयक एक ऐतिहासिक पहल है, लेकिन इसके साथ जुड़ी आलोचनाएँ भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं।

  • अगर इसे तुरंत और निष्पक्ष रूप से लागू किया जाए,
  • यदि ओबीसी और अल्पसंख्यक महिलाओं को भी विशेष अवसर दिया जाए,
  • और यदि राजनीतिक दल सचमुच महिलाओं को टिकट दें और नेतृत्व में आगे बढ़ाएँ,

तो यह संशोधन भारतीय लोकतंत्र को वास्तव में सशक्त और समावेशी बना सकता है।



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