भारत में लोकतंत्र की सफलता में चुनाव आयोग की भूमिका — स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के उदाहरण सहित
भारत में लोकतंत्र की सफलता में चुनाव आयोग की भूमिका — स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के उदाहरण सहित
भारत में लोकतंत्र केवल एक राजनीतिक व्यवस्था नहीं, बल्कि एक जीवंत परंपरा है जो हर पाँच साल में मतपेटियों (या अब EVM मशीनों) के जरिए जनता की भागीदारी से जीवित रहती है। इस विशाल लोकतांत्रिक यात्रा का संचालन करने की जिम्मेदारी भारतीय चुनाव आयोग (Election Commission of India) पर है, जिसने दशकों से यह सुनिश्चित किया है कि चुनाव स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी रहें।
1. स्वतंत्रता और निष्पक्षता का आधार
संविधान के अनुच्छेद 324 ने चुनाव आयोग को इतना व्यापक अधिकार दिया है कि वह चुनाव प्रक्रिया में किसी भी स्तर पर हस्तक्षेप कर सके, यदि निष्पक्षता खतरे में हो।
इसके कुछ प्रमुख संकेतक हैं:
- कार्यकाल की सुरक्षा: मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य आयुक्तों को कार्यकाल के दौरान मनमाने तरीके से नहीं हटाया जा सकता।
- पूर्ण प्रशासनिक नियंत्रण: चुनाव के समय आयोग राज्य और केंद्र सरकार के कर्मचारियों पर प्रत्यक्ष नियंत्रण रखता है।
2. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों में चुनाव आयोग की बड़ी उपलब्धियाँ — प्रमुख उदाहरण
(a) 1977 का आम चुनाव
आपातकाल (Emergency) के बाद 1977 का चुनाव भारतीय लोकतंत्र की परीक्षा थी। राजनीतिक वातावरण में तनाव था, लेकिन चुनाव आयोग ने निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव कराए, जिससे जनता ने पहली बार केंद्र की सत्ता बदल दी।
(b) 1989–90 में मतदाता पहचान पत्र अभियान
चुनाव आयोग ने मतदाता पहचान पत्र की शुरुआत कर चुनाव प्रक्रिया को और सुरक्षित बनाया, जिससे बोगस वोटिंग में कमी आई।
(c) 2004 का आम चुनाव और आचार संहिता की सख्ती
2004 में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एस. कृष्णमूर्ति ने आचार संहिता उल्लंघन पर कई बड़े नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की, जिससे यह संदेश गया कि कानून सबके लिए समान है।
(d) 2019 का आम चुनाव
दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव — 91 करोड़ से अधिक मतदाता, 10 लाख से अधिक मतदान केंद्र, 40 लाख कर्मचारियों की तैनाती। चुनाव आयोग ने तकनीक (EVM + VVPAT) के माध्यम से पारदर्शिता और विश्वास बनाए रखा।
(e) राज्य चुनावों में सख्ती
- बिहार विधानसभा चुनाव 2015: आयोग ने बड़ी संख्या में पुलिस और केंद्रीय बलों की तैनाती की, जिससे हिंसा और बूथ कैप्चरिंग की घटनाएँ बहुत कम हुईं।
- उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022: चुनाव से पहले कई अधिकारियों का स्थानांतरण किया गया ताकि प्रशासनिक पक्षपात रोका जा सके।
3. निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए अपनाए गए उपाय
- आचार संहिता (MCC): चुनाव की घोषणा होते ही सभी दलों पर लागू होती है।
- चुनाव पर्यवेक्षक: मतदान केंद्रों और गिनती स्थलों पर नज़र रखते हैं।
- वीवीपैट मशीनें: वोट डालने के बाद मतदाता को पर्ची के जरिए पुष्टि मिलती है।
- cVIGIL ऐप: जनता को शिकायत दर्ज करने का आसान तरीका।
- विशेष सुरक्षा व्यवस्था: संवेदनशील क्षेत्रों में केंद्रीय बलों की तैनाती।
- दिव्यांग एवं वरिष्ठ मतदाताओं के लिए सुविधा: घर-घर जाकर मतदान की सुविधा और व्हीलचेयर, रैंप उपलब्ध कराना।
4. बेहतरीन कार्यशैली का असर
भारतीय चुनाव आयोग के कारण ही:
- सत्ता में बैठे नेताओं को भी चुनाव के दौरान समान नियमों का पालन करना पड़ता है।
- बूथ कैप्चरिंग जैसी पुरानी समस्याएँ अब बहुत हद तक कम हुई हैं।
- ग्रामीण और शहरी, दोनों क्षेत्रों में मतदाता भागीदारी लगातार बढ़ रही है।
5. चुनौतियाँ और भविष्य की राह
- फेक न्यूज़ और सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार
- चुनावी खर्च में पारदर्शिता की कमी
- जातीय और धार्मिक ध्रुवीकरण
भविष्य में चुनाव आयोग को डिजिटल मॉनिटरिंग, राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता और कड़े दंडात्मक प्रावधान लागू करने होंगे।
निष्कर्ष
भारतीय चुनाव आयोग सिर्फ एक चुनाव कराने वाली संस्था नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र का प्रहरी है। इसकी निष्पक्षता और कड़े निर्णयों ने यह सुनिश्चित किया है कि भारत में जनता की आवाज़ ही सर्वोच्च शक्ति बनी रहे। चाहे 1977 की सत्ता परिवर्तन की ऐतिहासिक घटना हो, 2019 का विश्व का सबसे बड़ा चुनाव हो, या राज्य चुनावों में बूथ कैप्चरिंग पर अंकुश — हर बार आयोग ने साबित किया है कि वह लोकतंत्र का सच्चा रक्षक है।
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