मार्क्स और नीत्शे: दो अलग राहें, एक कलात्मक कुंजी इंसानी जीवन के लिए
मार्क्स और नीत्शे: दो अलग राहें, एक कलात्मक कुंजी इंसानी जीवन के लिए
कार्ल मार्क्स और फ़्रीड्रिख नीत्शे को अक्सर बिल्कुल अलग-अलग विचारधाराओं के प्रतिनिधि के रूप में देखा जाता है। मार्क्स समाज और अर्थव्यवस्था का क्रांतिकारी विश्लेषक था, जिसकी दृष्टि पूँजीवाद और वर्ग-संघर्ष की संरचना पर केंद्रित थी। वहीं, नीत्शे एक दार्शनिक-कवि और सांस्कृतिक आलोचक था, जो नैतिकता और मनोविज्ञान की गहराइयों में उतरकर जीवन के अर्थ को तलाशता था।
लेकिन, सतही भिन्नताओं के पीछे, एक गहरा मेल भी है — दोनों ने कला और कलात्मक दृष्टिकोण को अच्छे जीवन की मूल शर्त माना।
यहाँ “कला” का अर्थ केवल चित्रकला, संगीत या साहित्य तक सीमित नहीं है, बल्कि जीवन को रचनात्मक ढंग से जीने की वह क्षमता है, जो मनुष्य को सामान्य अस्तित्व से ऊपर उठाती है।
1. गैलरी से परे कला का अर्थ
नीत्शे के लिए कला केवल किसी माध्यम का नाम नहीं थी, बल्कि जीवन को एक कैनवास की तरह देखने का दृष्टिकोण थी — एक ऐसा कैनवास, जिसे साहस, शैली और जीवन-पुष्टि के रंगों से सजाया जा सकता है। The Birth of Tragedy में उसने कहा था:
“सिर्फ एक सौंदर्यात्मक घटना के रूप में ही अस्तित्व और दुनिया का शाश्वत औचित्य है।”
यह कोई सजावटी विचार नहीं है, बल्कि गहरी अस्तित्ववादी घोषणा है। जीवन का कोई पूर्व-निर्धारित नैतिक या धार्मिक औचित्य नहीं है; अगर हमें जीवन को सार्थक बनाना है, तो हमें स्वयं इसे रचना होगा।
मार्क्स के लिए कला, श्रम और मानवीय सृजनशीलता से जुड़ी थी। श्रम का मतलब सिर्फ आर्थिक उत्पादन नहीं, बल्कि अपने परिवेश को कल्पना के अनुसार आकार देने की क्षमता है। पूँजीवादी समाज में यह क्षमता “अलगाव” (Alienation) के कारण दब जाती है — श्रमिक अपनी मेहनत का फल खुद नहीं पा सकता, और अपनी रचनात्मक शक्ति से कट जाता है। एक मुक्त समाज में, यह अलगाव मिट जाता है और कला स्वतंत्र मानवीय अभिव्यक्ति का रूप ले लेती है।
2. आधुनिकता की आलोचना — दो दृष्टिकोण
दोनों विचारकों ने आधुनिकता की कठोर आलोचना की, लेकिन कारण और तरीके अलग थे।
- मार्क्स के अनुसार आधुनिकता की सबसे बड़ी समस्या पूँजीवाद है, जो श्रम और समय को वस्तु में बदल देता है। रचनात्मक ऊर्जा और फुर्सत छीन ली जाती है, और जीवन जीविका कमाने की मजबूरी में सिमट जाता है।
- नीत्शे के अनुसार आधुनिकता “ईश्वर की मृत्यु” के बाद नैतिक ढाँचे के पतन से पीड़ित है। साझा मूल्यों के बिना, समाज औसतपन और भीड़-मानसिकता में डूब जाता है। ऐसे समय में कला, आत्म-निर्माण का साधन बनकर हमें निडर जीवन की ओर बुलाती है।
दोनों मानते हैं कि आधुनिकता मानवीय संभावना को संकुचित करती है, और कला उसे पुनर्जीवित कर सकती है।
3. दो तरह के यूटोपिया — बाहरी बदलाव और भीतरी बदलाव
दोनों का लक्ष्य एक आदर्श भविष्य है, लेकिन उसकी प्रकृति अलग है।
- मार्क्स का यूटोपिया सामाजिक और भौतिक है — वर्गविहीन समाज, जहाँ आर्थिक शोषण का अंत हो और सभी के पास रचनात्मक अभिव्यक्ति के लिए साधन और समय हो।
- नीत्शे का यूटोपिया व्यक्तिगत और मनोवैज्ञानिक है — ऐसा मनुष्य (Übermensch) जो अपने मूल्य स्वयं गढ़े और जीवन को कला की तरह जिए, बिना किसी झूठे सहारे के।
एक बाहरी दुनिया को बदलने की बात करता है, तो दूसरा भीतर की दुनिया को।
4. कलात्मक दृष्टिकोण के गुण
दोनों के लिए कला सिर्फ रचना नहीं, बल्कि एक दृष्टिकोण है:
- तयशुदा मानकों को आँख मूँदकर स्वीकार न करना।
- परिस्थितियों को सक्रिय रूप से आकार देना।
- कठिनाइयों को पराजय नहीं, बल्कि सृजन का अवसर मानना।
मार्क्स इसे सामूहिक मुक्ति के माध्यम से संभव मानता है, जबकि नीत्शे इसे व्यक्तिगत आत्म-विजय से।
5. अलगाव (Alienation) से मुक्ति का साधन — कला
दोनों के यहाँ अलगाव का विचार है, लेकिन भिन्न रूपों में।
- मार्क्स के लिए यह संरचनात्मक है — पूँजीवाद श्रमिक को उसके श्रम, उत्पाद, साथियों और अपनी ही रचनात्मकता से काट देता है।
- नीत्शे के लिए यह आध्यात्मिक है — पारंपरिक मूल्यों के पतन के बाद मनुष्य अब तक यह नहीं सीख पाया है कि बिना बाहरी सहारे के कैसे अर्थपूर्ण जीवन जिया जाए।
कला, अपने गहरे अर्थ में, इस अलगाव को पाटने का सेतु है।
6. आज के संदर्भ में प्रासंगिकता
हमारे समय में — जो आर्थिक असमानता, तकनीकी बदलाव और सांस्कृतिक विखंडन से भरा है — मार्क्स और नीत्शे दोनों की चेतावनियाँ और समाधान महत्वपूर्ण हैं।
- मार्क्स हमें याद दिलाता है कि न्यायपूर्ण सामाजिक परिस्थितियों के बिना रचनात्मकता दम तोड़ देती है।
- नीत्शे सिखाता है कि आदर्श परिस्थितियों में भी, हमें जीवन का अर्थ स्वयं बनाना होता है।
दोनों मानते हैं कि कला कोई विलासिता नहीं, बल्कि मानव अस्तित्व की मूलभूत ज़रूरत है।
समापन
मार्क्स और नीत्शे की राहें भले अलग हों, लेकिन वे एक ही बिंदु पर मिलते हैं — मनुष्य अपनी श्रेष्ठतम अवस्था में सर्जक (Creator) है। चाहे समाज को न्यायपूर्ण बनाना हो या स्वयं को जीवन-कृति (work of art) में बदलना, कला के बिना यह संभव नहीं।
उनकी सम्मिलित शिक्षा यही है:
यदि हमें सच में जीना है — तो कलाकार की तरह जीना होगा।
हमारे कर्म, हमारे संबंध, और हमारी दुनिया — सब हमारी बनाई हुई रचना हों।
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