संविदा कर्मियों का संघर्ष: हक़ चाहिए, भीख नहीं!

संविदा कर्मियों का संघर्ष: हक़ चाहिए, भीख नहीं!

बिहार के संविदा कर्मी—चाहे शिक्षक हों, स्वास्थ्यकर्मी हों, अभियंता हों या सर्वेक्षण कर्मचारी—आज पूरे राज्य की रीढ़ हैं। लेकिन दुख की बात यह है कि जिनके कंधों पर बिहार की व्यवस्था टिकी है, उन्हीं को असुरक्षा, शोषण और उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है।

क्यों नाराज़ हैं संविदा कर्मी?

समान काम, पर वेतन आधा!

नौकरी हर पल खतरे में!

पेंशन, ईपीएफ, ईएसआईसी जैसी बुनियादी सुविधाएँ नहीं!

पदोन्नति और स्थायित्व का कोई अधिकार नहीं!


हम दिन-रात मेहनत करते हैं, पर सरकार हमें स्थायी दर्जा देने से बचती है।

हमारी माँगें स्पष्ट हैं!

1. संविदा कर्मियों को नियमित सेवा (Permanent) में शामिल किया जाए।


2. समान कार्य के लिए समान वेतन लागू किया जाए।


3. सेवा अवधि को 60 वर्ष तक सुनिश्चित किया जाए।


4. ईपीएफ, ईएसआईसी और सामाजिक सुरक्षा लाभ तुरंत दिए जाएँ।



यह हमारी भीख नहीं, हमारा संवैधानिक अधिकार है!

सरकार से सवाल

क्या बिहार का विकास असुरक्षा पर टिक सकता है?

क्या कर्मचारी बिना सम्मान और भविष्य की गारंटी के, पूरी निष्ठा से काम कर पाएँगे?

क्या “सस्ते श्रमिक” रखकर स्थायी समाधान संभव है?


सरकार को समझना होगा—संविदा व्यवस्था शोषण है, समाधान नहीं।

हमारी आवाज़

🔥 हम संविदा कर्मी हैं—भीख नहीं, अधिकार मांग रहे हैं!
✊ हम अस्थायी नहीं, स्थायी दर्जा चाहते हैं!
📢 समान काम, तो समान वेतन दो!
✍️ हमें न्याय चाहिए, छलावा नहीं!

निष्कर्ष

बिहार के संविदा कर्मियों की लड़ाई केवल रोज़गार की नहीं, समानता और न्याय की लड़ाई है।
आज हम सड़कों पर हैं, कल मजबूरी में और बड़े आंदोलन होंगे।
अगर सरकार ने आवाज़ नहीं सुनी, तो यह संघर्ष और तेज़ होगा।

“जब तक हक़ नहीं मिलेगा, संघर्ष जारी रहेगा!”

Comments