बिहार के पर्यटन क्षेत्र में हालिया विकास: एक विस्तृत दृष्टि
बिहार के पर्यटन क्षेत्र में हालिया विकास: एक विस्तृत दृष्टि
बिहार — प्राचीन विश्वविद्यालयों, विशाल नदी घाटियों और बहुस्तरीय सभ्यताओं की धरती — ने हाल के वर्षों में योजनाकारों, निवेशकों और यात्रियों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। लंबे समय तक केवल संभावनाओं की चर्चा तक सीमित रहने के बाद, 2024–25 में पर्यटन क्षेत्र में ठोस और दिखाई देने वाले कदम उठाए गए हैं। इनमें नीतिगत बदलाव, बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचे के प्रोजेक्ट, नए हेरिटेज और इको-टूरिज़्म प्रोजेक्ट, और धार्मिक व सांस्कृतिक स्थलों को नए तरीके से जोड़ने की योजनाएँ शामिल हैं। आइए इन प्रमुख विकासों और उनके असर पर विस्तार से नज़र डालते हैं।
1. नई पर्यटन नीति और निवेश को बढ़ावा
2025 में बिहार सरकार ने पर्यटन नीति में बड़े बदलाव करते हुए होटल निवेश और पर्यटन परियोजनाओं को निजी निवेशकों के लिए अधिक आकर्षक बना दिया है। नई नीति में होटल परियोजनाओं के लिए प्रवेश बाधाएं घटाई गई हैं, कर व अन्य प्रोत्साहन दिए गए हैं, और दिव्यांगजनों व स्थानीय समुदायों को रोजगार देने पर विशेष ज़ोर दिया गया है। इसका उद्देश्य बौद्ध, रामायण और सूफी सर्किट जैसे प्रमुख पर्यटन मार्गों पर आतिथ्य सेवाओं को आधुनिक और सुलभ बनाना है।
महत्त्व: आकर्षक नीतियाँ और कम बाधाएं गुणवत्तापूर्ण होटल व सुविधाओं के निर्माण को तेज़ कर सकती हैं, जिससे तीर्थ और विरासत पर्यटन को लंबे प्रवास व अधिक खर्च करने वाले पर्यटक मिलेंगे।
2. ₹1,300 करोड़ से अधिक का निवेश पैकेज
2024–25 के लिए राज्य ने लगभग ₹1,328 करोड़ की पर्यटन परियोजनाओं को मंजूरी दी है। इसमें पटना और अन्य शहरों में पर्यटन अवसंरचना का विकास, और पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) के तहत तीन पाँच सितारा होटल प्रोजेक्ट शामिल हैं। पटना में होटल पाटलिपुत्र अशोक परिसर, बांकीपुर बस स्टैंड क्षेत्र और सुल्तान पैलेस जैसे स्थानों के पुनर्विकास के लिए निविदाएं जारी की गई हैं।
महत्त्व: उच्च स्तरीय होटल राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन, तीर्थयात्रा और उच्च खर्च वाले यात्रियों को आकर्षित करते हैं, साथ ही निर्माण और आतिथ्य क्षेत्र में रोजगार भी बढ़ाते हैं।
3. हेरिटेज और सर्किट-आधारित पर्यटन
बिहार बौद्ध (बोधगया, नालंदा, वैशाली), रामायण, सूफी और हेरिटेज सर्किट को एक साथ जोड़कर बहु-दिवसीय पर्यटन पैकेज बना रहा है।
- वैशाली स्तूप का पुनरोद्धार: हाल ही में वैशाली के ऐतिहासिक बौद्ध स्तूप क्षेत्र में संरक्षण व सौंदर्यीकरण कार्य पूरे किए गए हैं। यहां नए मार्ग, सूचना पट्ट और लाइटिंग सिस्टम लगाए गए हैं, जिससे यह स्थल न केवल बौद्ध यात्रियों बल्कि आम पर्यटकों के लिए भी आकर्षक बन गया है।
- बोधगया बौद्ध सर्किट का केंद्र है, जबकि नालंदा और विक्रमशिला शैक्षिक विरासत को दर्शाते हैं। पटना साहिब और अन्य धार्मिक स्थलों पर भी उन्नयन कार्य जारी है।
महत्त्व: सर्किट मॉडल से पर्यटकों का प्रवास समय बढ़ता है और छोटे शहरों व कस्बों तक पर्यटन का लाभ पहुँचता है।
4. रोपवे, इको-टूरिज़्म और म्यूज़ियम
सरकार अब पारंपरिक पर्यटन से आगे बढ़ते हुए नए अनुभवों पर ध्यान दे रही है। जहानाबाद और रोहतास में रोपवे प्रोजेक्ट, राजगीर ज़ू सफारी, वाल्मीकि टाइगर रिज़र्व व कैमूर में इको-टूरिज़्म विकास, और नए म्यूज़ियम व इंटरप्रिटेशन सेंटर इसके उदाहरण हैं।
महत्त्व: विविध आकर्षणों से न केवल धार्मिक पर्यटक बल्कि साहसिक, पारिवारिक और वीकेंड यात्रियों को भी जोड़ा जा सकता है।
5. शहरी सौंदर्यीकरण: प्रकाश पुंज, जेपी गंगा पथ और ‘वेस्ट-टू-वंडर’ पार्क
पटना में प्रकाश पुंज (पटना साहिब) का सौंदर्यीकरण, और जेपी गंगा पथ के किनारे ‘डॉ. राजेंद्र प्रसाद-बिहार गौरव पार्क’ की घोषणा की गई है, जिसमें बिहार के ऐतिहासिक स्थलों के मॉडल कचरे से बनी कलाकृतियों के रूप में प्रदर्शित होंगे।
महत्त्व: आकर्षक सार्वजनिक स्थल और सौंदर्यीकरण से शहर में पर्यटन अनुभव बेहतर होता है और पर्यटक अधिक समय रुकते हैं।
6. ग्रामीण संपर्क और छोटी अवसंरचना
‘मुख्यमंत्री ग्रामीण सेतु योजना’ और ग्रामीण पर्यटन अपग्रेडेशन से दूरस्थ स्थलों तक पहुँच आसान बनाने पर भी ज़ोर है। बेहतर संपर्क छोटे कस्बों और गाँवों में होमस्टे, गाइडेड टूर और स्थानीय उत्पादों के कारोबार को बढ़ावा देगा।
7. चुनौतियाँ
- समय पर क्रियान्वयन: बड़े प्रोजेक्ट समय पर पूरे हों, इसके लिए ज़मीन अधिग्रहण, पारदर्शी निविदा और प्रबंधन की मज़बूती आवश्यक है।
- सतत विकास: बोधगया, वैशाली जैसे स्थलों पर भीड़, कचरा और बुनियादी सुविधाओं की कमी से निपटना ज़रूरी है।
- स्थानीय कौशल विकास: उच्च स्तरीय होटल और सेवाओं में स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षित और शामिल करना अहम है।
- सुरक्षा और धारणा: पर्यटकों की सुरक्षा और स्पष्ट जानकारी देना अनिवार्य है।
निष्कर्ष
बिहार के पास अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को एक मजबूत पर्यटन अर्थव्यवस्था में बदलने का यह सुनहरा अवसर है। यदि नीतियों, परियोजनाओं और स्थानीय सहभागिता के बीच संतुलन बनाया जाए, तो बिहार न केवल तीर्थ और विरासत पर्यटन में, बल्कि इको-टूरिज़्म और शहरी अनुभवों में भी एक मिसाल बन सकता है। वैशाली स्तूप जैसे नए सजे-धजे स्थलों के साथ, राज्य के पर्यटन मानचित्र में नई ऊर्जा जुड़ चुकी है।
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