एक मौके पर सुभाषचंद्र बोस ने गांधीजी से अपने मतभेदो के बारे में कहा ।
एक मौके पर सुभाषचंद्र बोस ने गांधीजी से अपने मतभेदो के बारे में कहा ।
लौकिक विषयो के कई क्षेत्रों में महात्मा गांधी के साथ एकमत नही हो पा रहा हूं , फिर भी उनके व्यक्तित्व के बारे में मेरा आदर किसी से कम नही है । मेरे बारे में गांधीजी का अभिप्राय क्या है यह मैं नही जानता । उनका मत चाहे जो भी हो , परंतु मेरा लक्ष्य तो हमेशा उनका विश्वास जीतना ही रहा है । इसका एकमात्र कारण है की बाकी सभी का विश्वास प्राप्त करने में सफल हो जाऊं और भारत के श्रेष्ठ मानव ( गांधी ) का विश्वास न पा सकूं तो वह मुझे कचोटता रहेंगा !
2 अक्तूबर 1943 बैंकॉक रेडीयो से प्रसारित अपने संदेश में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने कहा था ।
मन की शून्यता के ऐसे ही क्षणों में महात्मा गांधी का उदय हुआ । वे लाए अपने साथ असहयोग का सत्याग्रह का एक अभिनव अनोखा तरीका । एसा लगा मानो उन्हें विधाता ने ही स्वतंत्रता का मार्ग दिखाने के लिए भेजा था । क्षण भर में , स्वतः ही सारा देश उनके साथ हो गया । हर भारतीय का चेहरा आत्मविश्वास और आशा की चमक से दमक गया । अंतिम विजय की आशा फिर सामने थी ।
आने वाले बीस वर्षो तक महात्मा गांधी ने भारत की मुक्ति के लिए काम किया और उनके साथ काम किया भारत की जनता ने । ऐसा कहने में जरा भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यदि 1920 में गांधीजी आगे नहीं आते तो शायद आज भी भारत वैसा ही असहाय बना रहता । भारत की स्वतंत्रता के लिए उनकी सेवाएं अनन्य , अतुल्य रही है । कोई एक अकेला व्यक्ति उन परिस्थितियों में एक जीवन में उतना कुछ नही कर पा सकता था ।
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