क्या गांधीजी भगत सिंह को बचा सकते थे?

   


क्या गांधीजी भगत सिंह को बचा सकते थे?

भारत का स्वतंत्रता संग्राम अनेक विचारधाराओं, संघर्षों और नेतृत्व की कहानियों से भरा हुआ है। इनमें महात्मा गांधी और भगत सिंह दो ऐसे नाम हैं जो भले ही अलग-अलग रास्तों पर चले, लेकिन दोनों का लक्ष्य एक ही था – भारत की आज़ादी। इतिहास में बार-बार यह प्रश्न उठता है कि “क्या गांधीजी, अपनी अपार लोकप्रियता और प्रभाव के बल पर, भगत सिंह को फाँसी से बचा सकते थे?”

यह प्रश्न न केवल ऐतिहासिक विश्लेषण का विषय है, बल्कि यह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की जटिलताओं को समझने का भी माध्यम है।


गांधीजी और भगत सिंह की विचारधारा में अंतर

  • गांधीजी का मार्ग था अहिंसा और सत्याग्रह। उनका विश्वास था कि नैतिक बल और जन-आंदोलन से अंग्रेज़ी हुकूमत झुका सकती है।
  • भगत सिंह का मार्ग था क्रांतिकारी संघर्ष। उनका मानना था कि औपनिवेशिक शासन को केवल वैचारिक और हथियारबंद विद्रोह से ही उखाड़ा जा सकता है।

यह अंतर केवल रणनीति का नहीं था, बल्कि यह भारत के भविष्य की दिशा पर दो दृष्टिकोण थे।


भगत सिंह की गिरफ्तारी और मुकदमा

1929 में जब भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की केंद्रीय विधानसभा में बम फेंका (बिना किसी को नुकसान पहुँचाए, केवल “बहरों को सुनाने” के लिए), तो वे खुद ही गिरफ्तार हो गए। इसके बाद उन्हें लाहौर षड्यंत्र केस में मुकदमे का सामना करना पड़ा।

  • ब्रिटिश सरकार उन्हें केवल अपराधी के रूप में पेश करना चाहती थी।
  • लेकिन जनता ने उन्हें “शहीद-ए-आज़म” और स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीक के रूप में देखा।

गांधीजी की भूमिका और सीमाएँ

गांधीजी का अपार जनसमर्थन था और अंग्रेज़ी सरकार भी उनसे प्रभावित रहती थी। जब 1931 में गांधी-इरविन समझौता हुआ, तो व्यापक अपेक्षा थी कि गांधीजी भगत सिंह और उनके साथियों की फाँसी रोकने की शर्त रखेंगे।

गांधीजी ने वायसराय इरविन से भगत सिंह की सज़ा को आजीवन कारावास में बदलने की अपील की थी। लेकिन इसके बावजूद फाँसी रोकने का कोई ठोस आश्वासन नहीं मिल सका।

यहाँ प्रश्न उठता है –

  • क्या गांधीजी ने पर्याप्त दबाव बनाया?
  • क्या गांधीजी अपने आंदोलन की सफलता को खतरे में नहीं डालना चाहते थे?
  • या ब्रिटिश शासन पहले से ही फाँसी पर आमादा था, और गांधीजी भी असहाय थे?

आलोचना और ऐतिहासिक बहस

कई इतिहासकार और समकालीन नेता मानते हैं कि यदि गांधीजी चाहते तो अपने प्रभाव और आंदोलन की शक्ति से भगत सिंह को बचा सकते थे।

  • जवाहरलाल नेहरू ने भी माना था कि भगत सिंह की लोकप्रियता इतनी थी कि उन्हें जीवित रहने दिया जाता तो वे भविष्य में बड़ी राजनीतिक चुनौती बन सकते थे।
  • सुभाष चंद्र बोस ने बाद में कहा कि अंग्रेज़ सरकार ने भगत सिंह को इसीलिए फाँसी दी क्योंकि वह जनता के दिलों में गांधीजी जितने ही लोकप्रिय होते जा रहे थे।

दूसरी ओर, कुछ इतिहासकार यह तर्क देते हैं कि गांधीजी के पास सीमित विकल्प थे।

  • ब्रिटिश सरकार किसी भी कीमत पर भगत सिंह को जीवित नहीं रखना चाहती थी।
  • यदि गांधीजी समझौता तोड़ते, तो आज़ादी की लड़ाई को लंबा नुकसान होता।

गांधी और भगत सिंह – दो ध्रुव, एक सपना

भले ही गांधीजी भगत सिंह को फाँसी से न बचा सके, लेकिन दोनों की विरासत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक-दूसरे से जुड़ी हुई है।

  • गांधीजी ने जनांदोलन की ताक़त से लाखों को जगाया।
  • भगत सिंह ने युवाओं को बलिदान और साहस का मार्ग दिखाया।

दोनों ही रास्ते अंततः स्वतंत्रता की ओर ले गए।


निष्कर्ष

यह प्रश्न हमेशा इतिहास के विद्यार्थियों और भारतीय मानस में गूंजता रहेगा – “क्या गांधीजी भगत सिंह को बचा सकते थे?”

  • कुछ लोग कहेंगे “हाँ, अगर गांधीजी ने ज़्यादा दबाव बनाया होता”
  • कुछ लोग कहेंगे “नहीं, अंग्रेज़ सरकार ने पहले ही मन बना लिया था”

पर सच्चाई यह है कि भगत सिंह की फाँसी ने उन्हें अमर बना दिया। शायद अगर वे जीवित रहते तो उन्हें केवल एक नेता के रूप में देखा जाता, पर उनकी शहादत ने उन्हें विचारधारा और क्रांति का शाश्वत प्रतीक बना दिया।

इसलिए, यह कहना उचित होगा कि गांधीजी उन्हें भौतिक रूप से भले न बचा पाए हों, लेकिन भगत सिंह का नाम और विचार गांधीजी की अहिंसा की ही तरह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की धड़कन में हमेशा जीवित रहेंगे।



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