आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश : एक संतुलित दृष्टिकोण



आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश : एक संतुलित दृष्टिकोण

भारत में आवारा कुत्ते लंबे समय से बहस का विषय रहे हैं। एक ओर, आम नागरिकों के बीच कुत्तों के काटने, बच्चों और बुजुर्गों पर हमलों तथा रेबीज़ जैसी बीमारियों के फैलाव की चिंता है। दूसरी ओर, पशु अधिकार कार्यकर्ता और सामाजिक संगठन इन जानवरों के मानवीय और नैतिक संरक्षण पर ज़ोर देते रहे हैं। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों के संबंध में एक महत्वपूर्ण आदेश दिया, जिसका असर दिल्ली-एनसीआर के प्रशासन और समाज दोनों पर पड़ेगा।

सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने सात स्पष्ट और समयबद्ध आदेश दिए हैं:

  1. दिल्ली-एनसीआर से आवारा कुत्तों को हटाया जाए।
  2. जो कार्यकर्ता या लोग इस प्रक्रिया में बाधा डालेंगे, उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई होगी।
  3. दिल्ली सरकार, एमसीडी और एनडीएमसी को आठ हफ़्तों के भीतर कुत्तों के लिए शेल्टर (आश्रय स्थल) बनाने होंगे।
  4. सभी पकड़े गए कुत्तों का रिकॉर्ड रखा जाए।
  5. एक भी कुत्ते को पकड़ने के बाद छोड़ा न जाए।
  6. एक सप्ताह के भीतर कुत्तों के काटने की शिकायत के लिए हेल्पलाइन शुरू हो।
  7. रेबीज़ वैक्सीन कहाँ उपलब्ध है, इसकी जानकारी सार्वजनिक की जाए।

जनसुरक्षा की चिंता

दिल्ली-एनसीआर में लगातार बढ़ती कुत्तों के काटने की घटनाओं ने इस आदेश की पृष्ठभूमि तैयार की। बच्चों, बुजुर्गों और मज़दूरों पर हमले आम हो गए हैं। भारत दुनिया में सबसे अधिक रेबीज़ से होने वाली मौतों वाले देशों में गिना जाता है।

कई नागरिकों के लिए यह आदेश राहत का कदम है। खासकर अभिभावक मानते हैं कि इससे बच्चों की सुरक्षा बढ़ेगी। वहीं शहरी इलाकों में रहने वाले लोग उम्मीद कर रहे हैं कि सड़कों पर डर का माहौल कम होगा।

पशु अधिकार कार्यकर्ताओं की आशंकाएँ

पशु अधिकार समूहों ने इस आदेश पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि यदि कुत्तों को पकड़ा गया और छोड़ा नहीं गया, तो शेल्टर हाउस ओवरक्राउड (भीड़भरे) हो जाएंगे और जानवर अमानवीय परिस्थितियों में रहने को मजबूर होंगे।

अब तक लागू एनिमल बर्थ कंट्रोल (डॉग्स) नियम, 2001 में नसबंदी, टीकाकरण और पुनः उसी क्षेत्र में छोड़ने की व्यवस्था थी। कार्यकर्ताओं को डर है कि इस नीति से हटकर स्थायी कैद प्रणाली समस्या की जड़ तक नहीं पहुँचेगी।

अमल में आने वाली चुनौतियाँ

इस आदेश को लागू करना आसान नहीं है:

  • बुनियादी ढांचा (Infrastructure): आठ हफ्तों में पर्याप्त शेल्टर तैयार करना मुश्किल कार्य है।
  • संसाधन और फंडिंग: भोजन, दवाइयाँ और प्रशिक्षित स्टाफ़ जुटाना प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती होगी।
  • पारदर्शिता: रिकॉर्ड रखने और मानवीय व्यवहार सुनिश्चित करने की निगरानी ज़रूरी है।
  • सार्वजनिक सहयोग: लोगों को हेल्पलाइन का उपयोग करना और सुरक्षित ढंग से रिपोर्ट करना होगा।

वैश्विक परिप्रेक्ष्य : अन्य देश कैसे निपटते हैं?

भारत के अलावा कई देशों ने आवारा कुत्तों से निपटने के अलग-अलग तरीके अपनाए हैं:

  • थाईलैंड: नसबंदी और टीकाकरण अभियान चलाए जाते हैं, साथ ही शेल्टर बनाए जाते हैं। लेकिन अधिक भीड़ अभी भी समस्या है।
  • रोमानिया: हमलों के बाद कठोर क़ानून बनाए गए, जिनमें कुछ मामलों में कुत्तों को euthanasia (दया मृत्यु) भी दी जाती है। इससे वैश्विक विवाद खड़ा हुआ।
  • तुर्की: दयालु दृष्टिकोण अपनाया गया है। यहाँ कुत्तों को खुला रहने दिया जाता है लेकिन नगरपालिका द्वारा टीकाकरण, नसबंदी और भोजन की व्यवस्था की जाती है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका: अधिकांश शहरों में मज़बूत एनिमल कंट्रोल सिस्टम है। कुत्तों को शेल्टर में रखा जाता है, गोद लेने की कोशिश होती है, और न होने पर दया मृत्यु दी जाती है।
  • श्रीलंका: बड़े पैमाने पर टीकाकरण और नसबंदी कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय सहयोग से चलाए जाते हैं।

इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि हर देश ने अपनी सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार रास्ता चुना है। जहाँ जनसुरक्षा और पशु कल्याण का संतुलन साधा गया, वहाँ बेहतर परिणाम मिले।

आगे का रास्ता

भारत के लिए संतुलित नीति अपनाना ज़रूरी है। केवल पकड़कर शेल्टर में रखना पर्याप्त नहीं होगा।

  • शेल्टर को मानवीय बनाना और पर्याप्त संसाधन देना।
  • नसबंदी और टीकाकरण को जारी रखना।
  • लोगों को जागरूक करना कि कचरे और खुले भोजन से कुत्तों की संख्या कैसे बढ़ती है।
  • गोद लेने और NGO सहयोग को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का आदेश साहसिक और विवादास्पद दोनों है। यह नागरिक सुरक्षा की तत्काल ज़रूरत को संबोधित करता है, लेकिन साथ ही पशु अधिकारों को लेकर गहरी बहस भी खड़ी करता है।

दिल्ली-एनसीआर में यह कदम शायद तुरंत राहत लाए, लेकिन भारत में आवारा जानवरों के भविष्य को लेकर बहस अभी बाकी है। यदि भारत करुणा और व्यावहारिकता को मिलाकर समाधान खोजे, तो यह समस्या लंबे समय के लिए हल हो सकती है।



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