बिहार में मौर्य साम्राज्य के अवशेष – प्राचीन वैभव की गूंज



बिहार में मौर्य साम्राज्य के अवशेष – प्राचीन वैभव की गूंज

बिहार, भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का केंद्र, केवल एक भौगोलिक प्रदेश नहीं, बल्कि सभ्यताओं का जीवंत संग्रहालय है। भारत के प्राचीन इतिहास में मौर्य साम्राज्य (चौथी शताब्दी ईसा पूर्व – दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व) का स्थान अत्यंत गौरवपूर्ण है। चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा 321 ईसा पूर्व में स्थापित, बिंदुसार द्वारा पोषित और सम्राट अशोक महान के शासन में अपने चरम पर पहुँचा यह साम्राज्य अफगानिस्तान से लेकर बंगाल और हिमालय से लेकर दक्षिण के दक्कन तक फैला हुआ था।

यद्यपि मौर्य साम्राज्य का राजनीतिक अस्तित्व सदियों पहले समाप्त हो चुका है, इसके अवशेष आज भी बिहार की धरती पर बिखरे हैं, मानो किसी स्वर्णिम युग की अनसुनी कहानियाँ फुसफुसा रहे हों।


1. पाटलिपुत्र – मौर्य साम्राज्य की राजधानी

यूनानी राजदूत मेगास्थनीज ने पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) को एक विशाल, किलेबंद और बाग-बगीचों से सुसज्जित नगर बताया था। आज यह आधुनिक शहर के नीचे छिपा है, परंतु पुरातात्विक खुदाइयों में इसके कई चमत्कार सामने आए हैं—

  • कुम्हरार पुरातात्विक स्थल – यहाँ से अस्सी स्तंभों वाला सभा भवन मिला है, जिसे अशोक के दरबार या मंत्रिपरिषद का हिस्सा माना जाता है। चिकने बलुआ पत्थर के स्तंभ मौर्य काल की अद्वितीय शिल्पकला को दर्शाते हैं।
  • आरोग्य विहार – यहाँ मिले अवशेष बताते हैं कि मौर्य काल में स्वास्थ्य एवं शिक्षा केंद्र भी स्थापित थे।

2. बाराबर गुफाएँ – भारत की सबसे प्राचीन शैल-कट गुफाएँ

जहानाबाद ज़िले में स्थित बाराबर और नागार्जुनी पहाड़ियों की गुफाएँ अशोक और उनके पौत्र दशरथ के शासनकाल में निर्मित मानी जाती हैं। ये गुफाएँ आजीवक संप्रदाय को दान में दी गई थीं।

  • इनकी भीतरी सतह पर किया गया मौर्य पॉलिश आज भी चमकता है।
  • अशोक और दशरथ के शिलालेख इन गुफाओं की ऐतिहासिकता सिद्ध करते हैं।
  • इनमें सबसे प्रसिद्ध लोमस ऋषि गुफा का मुखभाग झोपड़ी जैसी नक़्क़ाशी लिए है, जो प्राचीन भारतीय स्थापत्य के विकास का उदाहरण है।

3. लौरिया नंदनगढ़ – अशोक स्तंभ और स्तूपों के अवशेष

पश्चिम चंपारण ज़िले का यह स्थल एक विशाल अशोक स्तंभ के लिए प्रसिद्ध है, जो एक ही बलुआ पत्थर से तराशा गया है और शीर्ष पर सिंह की आकृति है।

  • यहाँ प्राचीन स्तूपों का समूह भी है, जिन्हें मौर्यकालीन भिक्षुओं या जनजातीय प्रमुखों के समाधि स्थल माना जाता है।
  • यह स्थल अशोक के बौद्ध धर्म ग्रहण और धम्म प्रचार का साक्षी है।

4. लौरिया अरराज – एक और शांति का स्तंभ

पूर्वी चंपारण में स्थित यह अशोक स्तंभ बेहद अच्छी स्थिति में संरक्षित है। इसके शिलालेख नैतिक शासन और सभी प्राणियों के प्रति करुणा का संदेश देते हैं।


5. वैशाली – गणराज्य की धरती और मौर्य प्रभाव

वैशाली, जो लिच्छवी गणराज्य की राजधानी रही, मौर्य काल में अशोक के अधीन आ गई।

  • कोल्हुआ का अशोक स्तंभ – यहाँ एक अकेला बलुआ पत्थर का स्तंभ खड़ा है, जिसके पास ही वह स्थान है जहाँ बुद्ध ने अपना अंतिम उपदेश दिया था।
  • स्तंभ पर घंटाकार आधार और सिंह की मूर्ति मौर्यकालीन शिल्पकला का अद्वितीय उदाहरण है।

6. नालंदा और राजगीर – शिक्षा और आस्था के केंद्र

राजगीर, जो मौर्यों से पहले मगध की राजधानी था, मौर्यकाल में भी धार्मिक और प्रशासनिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण रहा।

  • अशोक ने यहाँ बुद्ध से जुड़े स्थलों का दर्शन किया और विहारों को संरक्षण दिया।
  • नालंदा के बाद के विकास की नींव भी मौर्यकाल में पड़ी, जिसका प्रमाण पुरातात्विक स्तरों में मिलता है।

7. दिदारगंज यक्षी – मौर्य कला का उत्कृष्ट नमूना

पटना संग्रहालय में संरक्षित दिदारगंज यक्षी प्रतिमा को मौर्यकालीन कला का शिखर माना जाता है। चिकने बलुआ पत्थर से बनी यह प्रतिमा प्राकृतिक सौंदर्य और मौर्य शिल्पकला की कोमलता का प्रतीक है।


इन अवशेषों का महत्व

मौर्यकालीन अवशेष केवल पत्थरों के ढांचे नहीं हैं—ये संस्कृति, राजनीति और धर्म के आदर्शों के प्रतीक हैं। इनसे पता चलता है कि मौर्य शासक केवल साम्राज्य निर्माता ही नहीं, बल्कि कला, प्रशासन और धार्मिक सहिष्णुता के संवाहक भी थे।


निष्कर्ष

पाटलिपुत्र के स्तंभित सभागार से लेकर बाराबर की शैल-कट गुफाओं तक, मौर्यकालीन बिहार हमें उस समय में ले जाता है जब भारत का एकीकरण अपने शिखर पर था। इन स्थलों का भ्रमण केवल इतिहास यात्रा नहीं, बल्कि उस युग के दर्शन का अनुभव है, जिसने भारतीय उपमहाद्वीप को नई दिशा दी।

इन पत्थरों में आज भी वह संदेश गूंजता है — साम्राज्य समाप्त हो सकते हैं, लेकिन उनके आदर्श अमर रहते हैं

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