जन्माष्टमी
जन्माष्टमी
मथुरा नगरी काँप रही थी, हर ओर अंधियारा छाया,
कंस के भय से मानव जग ने केवल दुख ही पाया।
देवकी माँ की आँखों में था दर्द और विरह अपार,
वसुदेव पिता भी मौन खड़े, जीवन था बेकरार।
कारागार की जंजीरों में बंधी आशा की डोर,
हर धड़कन में गूँज रहा था एक दबी हुई हुंकार।
धरती माँ भी पुकार रही थी, "अब तो लीला हो",
प्रभु अवतरित हो, मानवता का उद्धार करो।
आधी रात का समय हुआ, चाँदनी शीतल आई,
सभी दिशाओं में जैसे कोई मधुर बांसुरी बजाई।
चारों ओर छाया अद्भुत उजियारा बनकर,
प्रकट हुए नंदलाल, देवकी के आँचल तले उतरकर।
श्यामल तन पर दिव्य तेज, नयन कमल समान,
अधरों पर थी मुस्कान, मुख पर छाया गहन ज्ञान।
नन्हें बालक की आभा ने कारा को स्वर्ग बनाया,
भक्तों का मन पुलकित हुआ, आनंद का सागर छाया।
लोहे की सब बेड़ियाँ टूटीं, पहरेदार सो गए,
कारागार के द्वार स्वतः खुलकर जैसे मौन हो गए।
देवता नभ से फूल बरसाने लगे प्रसन्न होकर,
गूँज उठा ब्रह्मांड सारा "जय गोविंद" कहकर।
वसुदेव ने शिशु को टोकरी में रखा स्नेह से,
सिर पर उठाया और निकले अंधेरी राह में।
यमुना लहरों संग गर्जना करती आगे आई,
पर नन्हें चरण छूते ही उसकी धाराएँ रुक गईं।
साँप शेषनाग भी आ पहुँचे छाया करने को,
बारिश से रक्षा करने प्रभु के तन को।
हर ओर अद्भुत दृश्य, हर धड़कन गवाही दे,
यह कोई साधारण शिशु नहीं, ब्रह्म की प्रतिमा है।
गोकुल पहुँचे नंद बाबा का घर,
जहाँ यशोदा सोई थीं निःशंक, निःभय कर।
वहाँ रख आए नन्हें कान्हा को शांति से,
और ले आए कन्या योगमाया आभा से।
सुबह हुई तो गोकुल में हर्ष की लहर छा गई,
नंद के आँगन में खुशियों की वर्षा हो गई।
गोपियों ने गाया मंगलगीत, बजी बधाई,
संसार बोला, "कृष्ण आए, हरि मुस्कान लाए।"
यशोदा ने गोद में लिया नंदकिशोर,
आँखों से छलकी ममता की भोर।
मधुर हँसी और झनक पायल की ध्वनि,
हर दिशा में फैली भक्ति की रवनी।
गोपियाँ गा रही थीं झूला झूलाने के गीत,
गोपाल के चरणों में था प्रेम अतीत।
माखन चुराने की लीला का आरंभ हुआ,
हर मन में नया उल्लास और आनंद हुआ।
नटखट कान्हा का बाल रूप मनोहर,
हर दिन करता नई-नई अद्भुत लीला प्रखर।
कभी माखन खा जाए, कभी बांसुरी बजाए,
कभी ग्वालों संग बछड़ों को चराने जाए।
राधा संग मिलकर रचाई रस लीला,
प्रेम में पवित्रता, भक्ति की वीणा।
गोपियों के मन में रच गए श्याम,
उनके लिए ही जीवन, उनके ही नाम।
कृष्ण ने गीता का संदेश सुनाया,
धर्म का मर्म जग को समझाया।
करम करो, फल की चिंता मत करना,
जीवन का यथार्थ यही अपनाना।
जन्माष्टमी का पर्व हमें यह बताता,
अंधकार मिटाकर प्रकाश है लाना।
अन्याय के विरुद्ध सत्य की ज्योति जलाओ,
हर कदम पर धर्म का दीप जलाओ।
गोकुल से मथुरा तक गूँजी बांसुरी प्यारी,
हर मन में जगाई भक्ति की क्यारी।
कन्हैया की हँसी ने सबको मोहित किया,
उनके प्रेम ने जग को एक सूत्र में पिरोया।
गोपियों की आँखों में आँसू आनंद के,
हर लीला बन गई कथा चिरंतन के।
भक्तजन गाते, नाचते और झूमते,
"जय कन्हैया लाल की" स्वर हर ओर गूँजते।
बाल-कृष्ण की छवि मंदिरों में सजी,
भक्तों ने आरती की थाल सजाई।
माखन-मिश्री का भोग लगाया,
दूध-दही से जन्माष्टमी मनाया।
घरों में झूले सजते, कान्हा बैठाए जाते,
भक्त प्रेम से भजन और कीर्तन गाते।
मधुर स्वर लहरियाँ गगन में फैलती,
भक्ति की गंगा हर मन में बहती।
जन्माष्टमी की रात में दीप जलते,
हर घर, हर मंदिर उजियाले से सजते।
घंटियों की ध्वनि और शंखनाद बजते,
प्रेम और विश्वास से मन पुलकित रहते।
बच्चे बनते नन्हें कान्हा सजकर,
सिर पर मोरपंख और मुरली लेकर।
रासलीला के मंचन में कथा जीवित होती,
भक्ति की शक्ति से धरती पावन होती।
कृष्ण का जन्म संदेश यही देता,
अन्याय के विरुद्ध सत्य सदा रहता।
भक्ति और प्रेम से जीवन सजता,
जो कृष्ण को माने, उसका दुख हरता।
जन्माष्टमी का पर्व है मंगलमय,
हर मन में जागे विश्वास अमेय।
कन्हैया की लीला अमर और पावन,
हर भक्त कहे "श्याम तेरा जीवन।"
आज भी बजी बांसुरी हर मन में,
शांति, प्रेम और करुणा के क्षण में।
कृष्ण की स्मृति से भरता जीवन सारा,
जग बोले "जय नंदलाला प्यारा।"
इस प्रकार जन्माष्टमी का पर्व मनाएँ,
भक्ति, प्रेम और सद्भाव फैलाएँ।
हर मन में रच जाएँ कान्हा की छवियाँ,
सत्य और धर्म की बने अमर कथाएँ।
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