बौद्ध धर्म : गौतम बुद्ध का जीवन, उपदेश और विरासत
बौद्ध धर्म : गौतम बुद्ध का जीवन, उपदेश और विरासत
बौद्ध धर्म संसार की सबसे गहन दार्शनिक और आध्यात्मिक परंपराओं में से एक है। छठी शताब्दी ईसा पूर्व में सिद्धार्थ गौतम के उपदेशों से प्रारंभ हुआ यह धर्म भारत की धरती से निकलकर एशिया और पूरी दुनिया में फैल गया। इसकी नींव करुणा, प्रज्ञा, अहिंसा और दुःख से मुक्ति की खोज पर आधारित है।
गौतम बुद्ध का जीवन
जन्म: सिद्धार्थ गौतम का जन्म 563 ईसा पूर्व में लुंबिनी (वर्तमान नेपाल) में हुआ। वे शाक्य गण के राजकुमार थे। पिता का नाम शुद्धोधन और माता का नाम महामाया था। माता के निधन के बाद उनका पालन-पोषण महाप्रजापति गौतमी ने किया।
बाल्यकाल: उनका नाम सिद्धार्थ रखा गया, जिसका अर्थ है – "जो अपना लक्ष्य प्राप्त करे।" वे विलासिता में पले-बढ़े और जीवन की कठोर वास्तविकताओं से दूर रखे गए।
विवाह और परिवार: 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह यशोधरा से हुआ और उनके पुत्र का नाम राहुल रखा गया।
महाभिनिष्क्रमण (महान त्याग): 29 वर्ष की आयु में उन्होंने चार दृश्यों को देखा – बुढ़ापा, बीमारी, मृत्यु और एक संन्यासी। इन दृश्यों ने उन्हें गहराई से विचलित कर दिया। उन्होंने समझ लिया कि सांसारिक सुख क्षणिक है। इसके बाद उन्होंने राजमहल, परिवार और वैभव का त्याग कर सत्य और मुक्ति की खोज का मार्ग चुना।
ज्ञान की खोज
गुरुओं से शिक्षा: उन्होंने आलार कालाम और उद्दक रामपुत्र से ध्यान और योग की शिक्षा ली, लेकिन वे उनकी जिज्ञासा को शांत न कर सके।
कठोर तपस्या: सिद्धार्थ ने छह वर्ष तक उरुवेला (वर्तमान बोधगया) में कठिन तपस्या और उपवास किया। परंतु उन्होंने अनुभव किया कि अत्यधिक आत्मपीड़ा से सत्य की प्राप्ति संभव नहीं है।
ज्ञान की प्राप्ति (निर्वाण): अंततः 35 वर्ष की आयु में, बोधगया में निरंजना नदी के किनारे पीपल (बोधिवृक्ष) के नीचे गहन ध्यान के बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। वे ‘बुद्ध’ – अर्थात "जाग्रत" कहलाए।
बुद्ध के उपदेश
1. चार आर्य सत्य
- जीवन दुःखमय है।
- दुःख का कारण तृष्णा (इच्छा/आसक्ति) है।
- दुःख का नाश संभव है।
- दुःख नाश का मार्ग अष्टांगिक मार्ग है।
2. अष्टांगिक मार्ग
- सम्यक दृष्टि – सत्य को समझना।
- सम्यक संकल्प – करुणा और वैराग्य का भाव।
- सम्यक वाणी – सत्य और मधुर बोल।
- सम्यक कर्म – नैतिक और अहिंसक आचरण।
- सम्यक आजीविका – ऐसा जीवनयापन जिससे किसी को हानि न हो।
- सम्यक प्रयास – शुभ विचारों का विकास।
- सम्यक स्मृति – सजग और जागरूक रहना।
- सम्यक समाधि – ध्यान द्वारा मन की एकाग्रता।
बुद्ध के जीवन की प्रमुख घटनाएँ और प्रतीक
- कमल : जन्म का प्रतीक (पवित्रता और जागरण)।
- घोड़ा : महान त्याग का प्रतीक।
- बोधिवृक्ष : ज्ञान की प्राप्ति।
- धर्मचक्र (पहला उपदेश) : धर्म के चक्र का प्रवर्तन।
- स्तूप : कुशीनगर में महापरिनिर्वाण (483 ईसा पूर्व)।
बौद्ध तीर्थ स्थल
बौद्ध धर्म में आठ महत्त्वपूर्ण स्थानों को पवित्र माना जाता है:
- लुंबिनी – जन्मस्थान।
- बोधगया – ज्ञान प्राप्ति स्थल।
- सारनाथ – प्रथम उपदेश।
- कुशीनगर – महापरिनिर्वाण।
- राजगृह – शिक्षाओं और बौद्ध परिषदों का स्थान।
- वैशाली – अंतिम उपदेश।
- श्रावस्ती – अनेक उपदेश और चमत्कार।
- संकश्य – स्वर्ग से अवतरण।
बौद्ध परिषदें (संगीतियाँ)
- प्रथम परिषद (483 ईसा पूर्व, राजगृह) – महाकश्यप के नेतृत्व में, राजा अजातशत्रु के संरक्षण में।
- द्वितीय परिषद (383 ईसा पूर्व, वैशाली) – राजा कालाशोक के संरक्षण में।
- तृतीय परिषद (250 ईसा पूर्व, पाटलिपुत्र) – सम्राट अशोक के संरक्षण में।
- चतुर्थ परिषद (72 ईस्वी, कश्मीर) – कुषाण राजा कनिष्क के संरक्षण में।
बौद्ध साहित्य
त्रिपिटक (पाली भाषा):
- सुत्त पिटक – बुद्ध के उपदेश।
- विनय पिटक – भिक्षुओं के नियम।
- अभिधम्म पिटक – दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण।
अन्य ग्रंथों में मिलिंदपन्हो (राजा मेनांडर और भिक्षु नागसेन का संवाद) और जातक कथाएँ (बुद्ध के पूर्व जन्मों की कहानियाँ) शामिल हैं।
बौद्ध धर्म की शाखाएँ
-
हीनयान (थेरवाद):
- ध्यान और अनुशासन पर बल।
- पाली साहित्य।
- मूर्ति पूजा का कम महत्व।
- श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, कंबोडिया में प्रचलित।
-
महायान:
- करुणा और बोधिसत्व आदर्श पर बल।
- संस्कृत साहित्य।
- मूर्ति पूजा और अनुष्ठानों का महत्व।
- चीन, जापान, कोरिया, तिब्बत में फैला।
प्रमुख बौद्ध विश्वविद्यालय
भारत में बौद्ध शिक्षा के महान केंद्र बने:
- नालंदा – गुप्तकाल में स्थापित, धर्मपाल के संरक्षण में फला-फूला।
- विक्रमशिला – धर्मपाल द्वारा स्थापित।
- ओदंतपुरी – बिहार में स्थापित।
ये विश्वविद्यालय एशिया भर के विद्वानों को आकर्षित करते थे।
बौद्ध धर्म की विरासत
सम्राट अशोक के प्रयासों से तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में बौद्ध धर्म भारत से बाहर श्रीलंका, मध्य एशिया और आगे तक पहुँचा। समय के साथ इसने कला, वास्तुकला, दर्शन और संस्कृति को गहरा प्रभावित किया।
आज भी अहिंसा, सहिष्णुता और करुणा के सिद्धांत मानवता को दिशा प्रदान करते हैं।
निष्कर्ष
गौतम बुद्ध का जीवन और उपदेश मानवता के लिए शाश्वत मार्गदर्शन है। भौतिक सुख-सुविधाओं की चकाचौंध के इस युग में बौद्ध धर्म संतुलन, सचेतनता और करुणा की राह दिखाता है। सिद्धार्थ से बुद्ध बनने की यात्रा आत्म-संयम, साहस और मानवता के प्रति असीम प्रेम की प्रेरणा देती है।
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