पाकिस्तान–सऊदी सामरिक रक्षा संधि (17 सितम्बर 2025) और इसका भारतीय विदेश नीति पर प्रभाव
पाकिस्तान–सऊदी सामरिक रक्षा संधि (17 सितम्बर 2025) और इसका भारतीय विदेश नीति पर प्रभाव
1) क्या हुआ — संक्षेप में तथ्य
- 17 सितम्बर 2025 को पाकिस्तान और सऊदी अरब ने एक सामरिक परस्पर रक्षा समझौता (SMDA) किया, जिसके अनुसार किसी एक पर हमला, दोनों पर हमला माना जाएगा।
- पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने सार्वजनिक रूप से कहा कि पाकिस्तान की परमाणु क्षमता सऊदी अरब को उपलब्ध कराई जा सकती है। यह पहली बार है जब किसी समझौते में “सऊदी पर परमाणु छत्रछाया” की बात सामने आई।
- इस समझौते को क्षेत्रीय असुरक्षा, अमेरिका की विश्वसनीयता पर सवाल और इज़राइल-हमास संकट से जुड़े हालातों के बीच देखा जा रहा है। सऊदी अरब अपनी सुरक्षा साझेदारियों को विविध बनाना चाहता है।
2) भारत के लिए महत्व — रणनीतिक तर्क
यह संधि तीन स्तरों पर भारत की विदेश नीति और सुरक्षा गणना को प्रभावित करती है:
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दक्षिण एशिया (भारत–पाकिस्तान संदर्भ): अब किसी भी भारत–पाकिस्तान तनाव की स्थिति में सऊदी अरब परोक्ष रूप से शामिल हो सकता है। “न्यूक्लियर अंब्रेला” की संभावना हालात को और पेचीदा बनाती है।
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मध्य-पूर्व (भारत–सऊदी रिश्ते): भारत–सऊदी संबंध ऊर्जा, निवेश और प्रवासी समुदाय के कारण गहरे हैं। लेकिन रियाद का पाकिस्तान से सुरक्षा गठजोड़ भारत के लिए कूटनीतिक संतुलन की चुनौती है।
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परमाणु प्रसार और सिद्धांत: सऊदी अरब को परमाणु छत्रछाया देने की चर्चा पूरे क्षेत्र में प्रसार की आशंकाएँ बढ़ाती है। भारत की “नो फ़र्स्ट यूज़” नीति और उसका संदेश इस संदर्भ में और महत्वपूर्ण हो जाता है।
3) तात्कालिक प्रभाव — भारत की त्वरित प्रतिक्रिया
- राजनयिक संवाद: भारत ने पहले ही सऊदी अरब से “संवेदनशीलताओं का सम्मान” करने की अपील की है। आने वाले दिनों में उच्चस्तरीय संवाद और ऊर्जा/निवेश पर आश्वासन बढ़ेंगे।
- सुरक्षा आकलन: राष्ट्रीय सुरक्षा ढाँचे में नए परिदृश्य शामिल होंगे, विशेषकर पाकिस्तान सीमा और अरब सागर क्षेत्र पर।
- सार्वजनिक संदेश: भारत यह रेखांकित करेगा कि आर्थिक साझेदारी और तीर्थ/प्रवासी संबंध रक्षा संधि से प्रभावित नहीं होने चाहिए।
- भागीदारों से विमर्श: अमेरिका, फ्रांस, यूएई जैसे सहयोगियों से साझा रणनीति पर चर्चा होगी।
4) मध्यम अवधि में संभावित नीति परिवर्तन
- रक्षा आधुनिकीकरण: मिसाइल रक्षा, निगरानी और नौसैनिक शक्ति पर अधिक निवेश।
- ग़ल्फ संतुलन: सऊदी के साथ-साथ यूएई, क़तर, ओमान, बहरीन से संबंध गहरे करना।
- परमाणु नीति की स्पष्टता: सार्वजनिक रूप से “सिर्फ़ प्रतिरक्षा” नीति पर बल देना ताकि ग़लतफहमियाँ न हों।
- बहुपक्षीय पहल: दक्षिण एशिया और ग़ल्फ क्षेत्र में हथियार नियंत्रण व भरोसा बहाली की चर्चाएँ आगे बढ़ाना।
5) चार संभावित परिदृश्य
परिदृश्य A — कूटनीतिक नियंत्रण (सबसे संभावित)
सऊदी इस संधि को प्रतीकात्मक रूप में रखता है, कोई वास्तविक परमाणु सहयोग नहीं होता। भारत कूटनीति और ऊर्जा संबंध मज़बूत करता है।
परिदृश्य B — क्षेत्रीय सुरक्षा ध्रुवीकरण
पाकिस्तान–सऊदी सैन्य अभ्यास, खुफ़िया साझा करना और संभवतः ठिकानों का उपयोग शुरू करते हैं। भारत अपनी रक्षा तैयारियाँ बढ़ाता है और अन्य ग़ल्फ देशों से नज़दीकी बनाता है।
परिदृश्य C — परमाणु जोखिम (कम संभावना, गंभीर प्रभाव)
अगर औपचारिक परमाणु आश्वासन या तकनीकी सहयोग सामने आता है, तो ईरान और इज़राइल जैसे देश भी अपनी स्थिति बदलेंगे। भारत को तत्काल कूटनीतिक व सैन्य कदम उठाने होंगे।
परिदृश्य D — बहुपक्षीय संकट प्रबंधन (अवसर का मामला)
अंतरराष्ट्रीय दबाव से क्षेत्रीय संवाद बनता है। भारत मध्यस्थ या शांति-स्थापक की भूमिका निभाकर वैश्विक साख बढ़ा सकता है।
6) भारत के सामने तात्कालिक जोखिम
- संकेतों की ग़लत व्याख्या: परमाणु छत्रछाया पर अस्पष्ट बयान किसी गलत अनुमान को जन्म दे सकते हैं।
- रियाद के साथ दूरी: आक्रामक भारतीय प्रतिक्रिया से आर्थिक साझेदारी पर असर पड़ सकता है।
- क्षेत्रीय प्रसार: यह संधि ईरान और इज़राइल को भी नई रणनीति अपनाने पर मजबूर कर सकती है।
7) भारत के लिए व्यावहारिक सुझाव
- सऊदी से उच्चस्तरीय संवाद — लिखित आश्वासन कि भारत–पाक विवादों में सऊदी सीधे शामिल नहीं होगा।
- ग़ल्फ विविधीकरण — यूएई, क़तर, ओमान जैसे देशों से ऊर्जा व निवेश साझेदारी बढ़ाना।
- रक्षा क्षमता में वृद्धि — मिसाइल डिफेंस, नौसेना, खुफ़िया सहयोग।
- परमाणु नीति स्पष्ट करना — “नो फ़र्स्ट यूज़” पर दृढ़ता और तकनीकी सुरक्षा उपाय।
- बहुपक्षीय पहल — दक्षिण एशिया–ग़ल्फ भरोसा बहाली तंत्र को बढ़ावा देना।
- संतुलित सार्वजनिक संदेश — दृढ़ लेकिन संयमित बयान ताकि कूटनीति के लिए जगह बनी रहे।
8) निष्कर्ष
पाकिस्तान–सऊदी रक्षा संधि एक अहम भू-राजनीतिक घटना है। “परमाणु छत्रछाया” जैसी बातें इसे और गंभीर बनाती हैं। भारत के लिए सही रास्ता है संयमित कूटनीति, मज़बूत प्रतिरक्षा और बहुपक्षीय जुड़ाव। यदि सही संतुलन साधा जाए तो भारत अपने ऊर्जा और सुरक्षा हितों को सुरक्षित रखते हुए इस नए क्षेत्रीय परिदृश्य को अवसर में बदल सकता है।
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