एच-1बी वीज़ा संकट: भारतीय पेशेवरों के लिए बदलता अमेरिकी सपना
एच-1बी वीज़ा संकट: भारतीय पेशेवरों के लिए बदलता अमेरिकी सपना
भूमिका
पिछले कुछ दशकों से अमेरिका भारतीय पेशेवरों के लिए ‘ड्रीम डेस्टिनेशन’ माना जाता रहा है। खासकर आईटी, इंजीनियरिंग और मेडिकल क्षेत्र के युवाओं के लिए एच-1बी वीज़ा एक सुनहरा अवसर लेकर आता था। लेकिन हाल के वर्षों में अमेरिकी नीतियों में बदलाव ने इस सपने को चुनौती दे दी है। डोनाल्ड ट्रंप के ‘अमेरिका फर्स्ट’ एजेंडे के तहत एच-1बी वीज़ा शुल्क में भारी बढ़ोतरी और नियमों की सख़्ती ने भारतीयों के लिए नई मुश्किलें खड़ी कर दी हैं।
एच-1बी वीज़ा – भारतीयों के लिए महत्व
एच-1बी वीज़ा उच्च कौशल वाले विदेशी पेशेवरों के लिए अमेरिका का सबसे लोकप्रिय वर्क वीज़ा है। हर साल जारी होने वाले वीज़ा का 65-70% हिस्सा भारतीयों को मिलता है। भारतीय आईटी कंपनियां अपने बड़े प्रोजेक्ट पूरे करने के लिए इसी वीज़ा पर निर्भर रहती हैं।
नया संकट: शुल्क और नियम
पहले जहां एच-1बी वीज़ा की लागत लगभग 5 लाख रुपये के बराबर थी, वहीं अब यह लाखों रुपये बढ़कर 80-90 लाख रुपये तक हो गई है।
प्रोसेसिंग समय और सुरक्षा जांच पहले से अधिक सख़्त कर दी गई हैं।
कंपनियों को अधिक डॉक्यूमेंटेशन और स्थानीय कर्मचारियों को प्राथमिकता देनी होगी।
भारतीय कंपनियों और पेशेवरों पर असर
1. आईटी सेक्टर पर सीधा दबाव – भारतीय आईटी कंपनियों को अमेरिका में नए प्रोजेक्ट्स लेना महंगा हो गया है।
2. छात्रों का सपना कठिन – अमेरिका जाकर पढ़ाई कर चुके भारतीय छात्रों के लिए वर्क वीज़ा पाना और मुश्किल हो जाएगा।
3. नौकरी के अवसर सीमित – मध्यम स्तर के और नए प्रोफेशनल्स के लिए अमेरिका में करियर बनाना चुनौतीपूर्ण होगा।
अमेरिका का दृष्टिकोण
अमेरिका का मानना है कि विदेशी पेशेवरों के अधिक आने से स्थानीय अमेरिकियों की नौकरियां प्रभावित होती हैं। ट्रंप प्रशासन ने इसी को आधार बनाकर वीज़ा शुल्क और नियमों को कड़ा किया। उनका कहना है कि इस कदम से अमेरिकी नागरिकों को ज्यादा मौके मिलेंगे।
भारतीय पेशेवरों की चिंता
खर्च बढ़ने का डर – कंपनियां इतनी अधिक लागत उठाने से हिचक सकती हैं।
अनिश्चित भविष्य – हर साल लॉटरी प्रणाली और सीमित वीज़ा कोटा भारतीयों को असमंजस में डाल देता है।
करियर की दिशा बदलना – कई भारतीय अब कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप जैसे देशों की ओर देखने लगे हैं।
संभावित सकारात्मक पहलू
भारत में ही उच्चस्तरीय रोजगार के अवसर पैदा करने की संभावना बढ़ सकती है।
भारतीय कंपनियां ऑफशोर मॉडल को और मजबूत कर सकती हैं।
विदेशी अनुभव की बजाय स्थानीय स्किल डेवलपमेंट पर जोर बढ़ सकता है।
सरकार की भूमिका
भारत सरकार इस मुद्दे पर अमेरिकी प्रशासन से बातचीत कर रही है। यह सिर्फ आर्थिक नहीं बल्कि कूटनीतिक विषय भी बन चुका है। भारत का तर्क है कि भारतीय पेशेवर अमेरिकी कंपनियों के लिए अनिवार्य हैं और उनकी उपस्थिति से अमेरिका की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ती है।
आगे का रास्ता
भारतीय पेशेवरों को नई तकनीकों (AI, Data Science, Cybersecurity) में कौशल बढ़ाना होगा ताकि वे हर बाजार में मांग में रहें।
कंपनियों को अपने ऑपरेशन अधिक विविध देशों में फैलाने होंगे।
स्टार्टअप्स और उद्यमिता को बढ़ावा देकर भारत के अंदर ही रोजगार सृजन करना होगा।
निष्कर्ष
एच-1बी वीज़ा शुल्क वृद्धि सिर्फ एक प्रशासनिक निर्णय नहीं बल्कि बदलते वैश्विक आर्थिक समीकरण का संकेत है। भारतीय पेशेवरों और कंपनियों को अब नए अवसरों, नए बाजारों और नई रणनीतियों के साथ आगे बढ़ना होगा। अमेरिका भले ही सबसे बड़ा रोजगार बाजार हो, लेकिन विश्व में विकल्पों की कमी नहीं है। यह समय है जब भारत अपने मानव संसाधन और तकनीकी ताकत को अपने ही देश में सशक्त बनाकर ‘ब्रेन गेन’ की ओर कदम बढ़ाए।
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