क्या ही मरूँगा मैं, कभी नहीं मर सकता मैं।

क्या ही मरूँगा मैं,
कभी नहीं मर सकता मैं।
मैं सोचता हूँ,
और सोचूँगा ही —
वो जान ही जाएगी एक दिन।

मैं बोलूँ या न बोलूँ,
लिखूँ या न लिखूँ,
तेरा नाम मेरी रगों में गूँजेगा।

तू जा,
चली जा...
मैं फिर भी लिखूँगा।
पहले तुझसे मिलने पर लिखता था,
अब तुझसे बिछड़ने पर लिखूँगा।

मेरी कलम तेरे जाने का ग़म
काग़ज़ पर उतार देगी,
और हर शब्द में
तेरे होने की गवाही रहेगी।




तू सोच,
मैं लिखूँगा,
तेरे लिए ही,
पर लिखूँगा।

अच्छा लगेगा मुझे
तेरे लिए लिखना,
शायद तेरे ख़यालों में
कभी मैं भी मिल जाऊँ।

चुपके से तेरे सपनों में
अपना नाम छोड़ आऊँ,
तू पढ़े मेरी लिखी बातें
और मैं तेरी धड़कनों में बस जाऊँ।

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