अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय से देशों का बाहर होना : वैश्विक न्याय के लिए चुनौती
अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय से देशों का बाहर होना : वैश्विक न्याय के लिए चुनौती
तारीख : 24 सितम्बर 2025
अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय (International Criminal Court – ICC) की स्थापना 2002 में रोम संविधि (Rome Statute) के अंतर्गत की गई थी। इसका उद्देश्य नरसंहार, मानवता के विरुद्ध अपराध, युद्ध अपराध और आक्रमण जैसे गंभीर अपराधों के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों को सजा दिलाना था। यह संस्थान एक ऐसे वैश्विक न्यायिक तंत्र का प्रतीक माना गया जहाँ कोई भी अपराधी, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, कानून से ऊपर न हो।
लेकिन हाल ही में बुर्किना फासो, माली और नाइजर द्वारा ICC से बाहर होने का निर्णय, और इससे पहले हंगरी का बाहर होना, इस संस्था की प्रासंगिकता और भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।
बाहर होने के कारण
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पक्षपात का आरोप :
अफ्रीकी देशों का मानना है कि ICC ने अफ्रीका पर अत्यधिक ध्यान दिया, जबकि अन्य शक्तिशाली देशों और उनके सहयोगियों पर कार्यवाही करने से परहेज किया। इससे यह धारणा बनी कि ICC निष्पक्ष संस्था नहीं, बल्कि राजनीतिक दबाव का साधन है। -
राष्ट्रीय संप्रभुता :
इन देशों का तर्क है कि अपराधों का निपटारा उनकी अपनी न्यायिक व्यवस्था द्वारा किया जाना चाहिए। बाहरी हस्तक्षेप उनकी संप्रभुता को कमज़ोर करता है। -
क्षेत्रीय एकजुटता :
बुर्किना फासो, माली और नाइजर हाल ही में ‘साहेल राज्यों का गठबंधन’ (Alliance of Sahel States) के रूप में और अधिक करीब आए हैं। इनका सामूहिक बाहर होना क्षेत्रीय स्वायत्तता की घोषणा माना जा रहा है। -
हंगरी का मामला :
हंगरी ने 2025 की शुरुआत में बाहर होने की घोषणा की थी। यूरोपीय संस्थाओं के साथ बढ़ते टकराव और “सार्वभौमिक संस्थाओं के बजाय राष्ट्रीय नियंत्रण” की नीति ने उसे ICC से बाहर होने की ओर धकेला।
वैश्विक न्याय पर प्रभाव
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ICC की विश्वसनीयता में कमी :
हर सदस्य का बाहर होना ICC की सार्वभौमिकता को कमजोर करता है। यदि यह प्रवृत्ति जारी रही तो न्यायालय की छवि एक पक्षपाती संस्था के रूप में और गहरी हो जाएगी। -
क्षेत्रीय न्याय तंत्र का उदय :
अफ्रीका और अन्य क्षेत्रों में अब ICC के स्थान पर क्षेत्रीय न्यायिक संस्थाओं को बढ़ावा मिल सकता है। हालांकि इससे स्थानीय भागीदारी बढ़ेगी, परंतु अंतर्राष्ट्रीय कानून की एकरूपता पर प्रश्न उठेंगे। -
अन्य देशों के लिए प्रेरणा :
यह कदम उन देशों को भी प्रोत्साहित कर सकता है जो ICC की आलोचना करते रहे हैं। इससे सामूहिक बहिर्गमन की संभावना भी बढ़ सकती है। -
पीड़ितों की चिंता :
युद्ध अपराधों या मानवता विरोधी अपराधों से प्रभावित समुदायों के लिए ICC अंतिम उम्मीद माना जाता था। इन देशों के बाहर होने से पीड़ितों के लिए न्याय की राह और कठिन हो जाएगी।
संप्रभुता और न्याय का संतुलन
यह संकट दरअसल राष्ट्रीय संप्रभुता और वैश्विक जवाबदेही के बीच टकराव का परिणाम है। यदि देश केवल संप्रभुता की रक्षा पर जोर देंगे तो गंभीर अपराधों के दोषी छूट सकते हैं। वहीं यदि ICC देशों की चिंताओं को अनदेखा करता है, तो सदस्यता में लगातार गिरावट आएगी। इसलिए आवश्यक है कि ICC सुधार की दिशा में कदम उठाए और क्षेत्रीय न्यायालयों के साथ सहयोग को मजबूत करे।
निष्कर्ष
बुर्किना फासो, माली, नाइजर और हंगरी का ICC से बाहर होना एक ऐतिहासिक मोड़ है। यह केवल एक कानूनी संस्था का प्रश्न नहीं, बल्कि वैश्विक न्याय व्यवस्था की विश्वसनीयता पर चुनौती है। अब यह ICC पर निर्भर है कि वह अपने ढांचे को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाए और यह साबित करे कि न्याय सचमुच सार्वभौमिक है—राजनीति या भौगोलिक सीमाओं से परे।
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