आविष्कार और पछतावा : जब उपलब्धि बोझ बन जाती है
आविष्कार और पछतावा : जब उपलब्धि बोझ बन जाती है
मानव इतिहास खोजों और आविष्कारों की गाथा है। हर युग में ऐसे महान मस्तिष्क हुए जिन्होंने असंभव को संभव बनाया, समाज को नई दिशा दी और सभ्यता का मार्ग बदल दिया। परन्तु इन उपलब्धियों के साथ एक गहरी विडम्बना भी जुड़ी है—अनेक बार वही वैज्ञानिक और आविष्कारक, जिन्होंने महान खोजें कीं, आगे चलकर उन्हीं के दुष्परिणामों से भयभीत और पश्चाताप से भर उठे।
आज कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) के जनक कहे जाने वाले ज्योफ्री हिन्टन (Geoffrey Hinton) इसका नवीनतम उदाहरण हैं। लेकिन इतिहास के पन्ने पलटें तो हमें कई ऐसे ही प्रसंग मिलते हैं—ओपेनहाइमर और परमाणु बम, अल्फ्रेड नोबेल और डायनामाइट, राइट बंधु और हवाई जहाज़, यहाँ तक कि इंटरनेट तक।
ज्योफ्री हिन्टन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता की चिंता
सन 2024 में ज्योफ्री हिन्टन को नोबेल पुरस्कार मिला। उन्होंने 1980 के दशक में न्यूरल नेटवर्क्स और बैक-प्रोपेगेशन एल्गोरिथ्म पर जो कार्य किया, उसने आज की आधुनिक ए.आई. क्रांति की नींव रखी।
लेकिन पुरस्कार मंच से उनका वक्तव्य उत्सव से अधिक चेतावनी था। उन्होंने कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता अब केवल प्रगति का औजार नहीं रही। यह पहले ही नुकसान पहुँचा रही है—सोशल मीडिया पर echo chambers बना रही है, झूठी खबरें फैला रही है, सरकारों को जन-निगरानी में सक्षम बना रही है और अपराधियों के हाथ में खतरनाक औज़ार दे रही है।
उनकी सबसे बड़ी आशंका थी: “हम नहीं जानते कि आने वाले समय में हम इन्हें नियंत्रित भी कर पाएंगे या नहीं।”
हिन्टन का यह पश्चाताप हमें इतिहास की उन गाथाओं की याद दिलाता है जब महान आविष्कारक अपने ही सृजन से भयभीत हो उठे।
जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर और परमाणु बम
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने मैनहैटन प्रोजेक्ट का नेतृत्व किया और पहला परमाणु बम बनाया। उस समय यह युद्ध समाप्त करने का हथियार माना गया, लेकिन हिरोशिमा और नागासाकी पर इसके प्रयोग ने लाखों निर्दोष लोगों की जान ले ली।
पहले ही परीक्षण के बाद ओपेनहाइमर ने भगवद्गीता की पंक्ति याद की: “अब मैं मृत्यु हूँ, लोकों का संहारक।”
युद्ध समाप्ति के बाद वे परमाणु हथियारों के प्रबल विरोधी बन गए और जीवन भर उनके प्रसार को रोकने की वकालत करते रहे।
उनकी कहानी इस सच्चाई को उजागर करती है कि ज्ञान और शक्ति, जब नियंत्रण से बाहर निकलते हैं, तो मानवता पर घोर संकट बन जाते हैं।
अल्फ्रेड नोबेल और डायनामाइट की विडम्बना
1867 में अल्फ्रेड नोबेल ने डायनामाइट का आविष्कार किया। उनका उद्देश्य खनन और निर्माण कार्य को सुरक्षित और आसान बनाना था। लेकिन जल्द ही यह युद्ध और हिंसा का हथियार बन गया।
कहा जाता है कि जब एक समाचार पत्र ने गलती से उनका शोक-संदेश प्रकाशित किया और उन्हें “मृत्यु का व्यापारी” कहा, तब नोबेल गहरे आहत हुए।
उन्होंने निश्चय किया कि उनकी विरासत विनाश नहीं, बल्कि मानवता के कल्याण से जुड़ी होनी चाहिए। परिणामस्वरूप उन्होंने अपनी सम्पत्ति से नोबेल पुरस्कार की स्थापना की, जो आज शांति, साहित्य और विज्ञान में योगदान के लिए दिया जाता है।
राइट बंधु और हवाई जहाज़ का सैन्यीकरण
1903 में राइट बंधुओं ने पहला सफल विमान उड़ाया। उनका सपना था—मानव आकाश में उड़ सके, दूरी कम हो और दुनिया एक-दूसरे से जुड़ सके।
लेकिन उनकी कल्पना जल्दी ही ध्वस्त हो गई। प्रथम विश्व युद्ध तक विमान बम गिराने और हवाई युद्ध के औज़ार बन चुके थे। मानवीय सम्पर्क का प्रतीक बना यह आविष्कार, युद्ध और मृत्यु का साधन बन गया।
इंटरनेट: वादा और संकट
इंटरनेट को जन्म देने वाले वैज्ञानिकों ने इसे ज्ञान बाँटने और विश्व को जोड़ने का माध्यम माना। वास्तव में यह शिक्षा, व्यापार और संचार में क्रांतिकारी सिद्ध हुआ।
लेकिन दूसरी ओर, आज इंटरनेट साइबर अपराध, झूठी खबरों, हैकिंग, निजता-भंग और डिजिटल साम्राज्यवाद का औज़ार भी बन चुका है। स्वयं टिम बर्नर्स-ली जैसे आविष्कारक इसके दुरुपयोग और निजी जीवन पर इसके दुष्प्रभावों के विरुद्ध आवाज़ उठाने लगे हैं।
साझा धागा : दूरदृष्टि के बिना आविष्कार
चाहे हिन्टन हों या ओपेनहाइमर, नोबेल हों या राइट बंधु—इनमें से किसी ने भी मानवता को नुकसान पहुँचाने की नीयत से आविष्कार नहीं किया। उनके उद्देश्य प्रगति, सुविधा और ज्ञान-वृद्धि के थे। लेकिन एक बार तकनीक दुनिया में पहुँच गई तो उसका स्वरूप बदल गया और वह शक्ति सरकारों, सेनाओं व निगमों के हाथ में चली गई।
यह हमें सिखाता है कि सृजन के साथ दूरदृष्टि और नैतिक जिम्मेदारी भी आवश्यक है। अन्यथा हम बार-बार वही भूल दोहराते रहेंगे—पहले निर्माण, फिर पछतावा।
ए.आई. का युग और हमारी जिम्मेदारी
आज कृत्रिम बुद्धिमत्ता उसी मोड़ पर खड़ी है। यह शिक्षा, चिकित्सा, संचार और उद्योगों में अभूतपूर्व अवसर ला रही है, लेकिन इसके साथ ही झूठी खबरें, निगरानी, हथियारकरण और नियंत्रण खोने का खतरा भी बढ़ रहा है।
ज्योफ्री हिन्टन की चेतावनी हमें यही बताती है कि इतिहास हमें पहले ही सिखा चुका है—अनियंत्रित शक्ति विनाशकारी होती है। अब सवाल यह है कि क्या हम इस बार समय रहते सचेत होंगे, या फिर वही पुराना चक्र दोहराएँगे—पहले रचना और फिर पश्चाताप।
निष्कर्ष : सृजन ही जिम्मेदारी की शुरुआत है
मानव का सबसे बड़ा वरदान उसकी रचनात्मकता है, पर यही सबसे बड़ी चुनौती भी है।
ओपेनहाइमर, नोबेल, राइट बंधु, इंटरनेट के जनक और अब हिन्टन—इन सभी की कहानियाँ एक ही सच्चाई कहती हैं: आविष्कार केवल शक्ति नहीं, बल्कि जिम्मेदारी भी है।
हर नई खोज अपने भीतर दो ध्रुव लिए होती है—एक जो अज्ञान और कष्ट मिटा सकता है, और दूसरा जो समाज को तोड़ सकता है।
इसलिए असली प्रश्न केवल यह नहीं है—“क्या हम इसे बना सकते हैं?” बल्कि यह भी है—“क्या हमें इसे बनाना चाहिए, और यदि हाँ, तो इसे नियंत्रित कैसे करेंगे?”
यदि हमने इन प्रश्नों को समय रहते नहीं सुलझाया तो आज के चमत्कार, कल की त्रासदी बन सकते हैं।
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