रूस-यूक्रेन युद्ध, ऊर्जा बाज़ार और वैश्विक राजनीति : एक गंभीर विश्लेषण

रूस-यूक्रेन युद्ध, ऊर्जा बाज़ार और वैश्विक राजनीति : एक गंभीर विश्लेषण

रूस-यूक्रेन युद्ध ने न केवल यूरोप बल्कि पूरी दुनिया की राजनीति, अर्थव्यवस्था और ऊर्जा सुरक्षा को गहराई से प्रभावित किया है। इस संघर्ष ने यह दिखा दिया कि किसी भी बड़े युद्ध के प्रभाव सिर्फ़ युद्धभूमि तक सीमित नहीं रहते, बल्कि वैश्विक बाज़ार, तेल-गैस की आपूर्ति और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति पर भी गहरा असर डालते हैं।

1. रूसी तेल और ऊर्जा आपूर्ति पर निर्भरता

रूस दुनिया के सबसे बड़े तेल और गैस उत्पादकों में से एक है। यूरोप और एशिया के अनेक देशों के लिए रूसी तेल एक प्रमुख ऊर्जा स्रोत रहा है। 2022 में जब रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू हुआ, तब पश्चिमी देशों ने रूस पर कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगाए। फिर भी, वैश्विक बाज़ार की वास्तविकता यह है कि तेल और गैस की मांग बनी रहती है। यही कारण है कि भारत, चीन, तुर्की सहित कई देशों ने रूसी तेल खरीदना जारी रखा।

2. भारत और चीन की भूमिका

भारत और चीन, दोनों ही ऊर्जा-उपभोग के बड़े केंद्र हैं। इन देशों की विशाल जनसंख्या और तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के कारण ऊर्जा की मांग लगातार बढ़ रही है। रूस ने पश्चिमी प्रतिबंधों के बाद एशियाई बाज़ारों की ओर रुख किया, जहाँ उसे भारत और चीन जैसे बड़े खरीदार मिले।

भारत ने किफ़ायती दामों पर रूसी कच्चा तेल खरीदकर अपने ऊर्जा बिल को कम करने की कोशिश की।

चीन ने भी रूस के साथ ऊर्जा और व्यापारिक संबंध मज़बूत किए।


3. नाटो और पश्चिमी देशों की स्थिति

नाटो देश शुरू में रूस पर कठोर प्रतिबंध लगाने की वकालत करते रहे, लेकिन व्यवहार में कई यूरोपीय देशों ने रूसी गैस और अन्य ऊर्जा स्रोतों को पूरी तरह से नहीं छोड़ा। कुछ देशों ने वैकल्पिक स्रोत खोजे, किंतु तुरंत 100% निर्भरता समाप्त करना संभव नहीं था। इससे यह संदेश गया कि राजनीति और व्यवहारिक ज़रूरतें अक्सर अलग दिशा में चलती हैं।

4. युद्ध का वित्तीय आयाम

रूसी तेल और गैस की बिक्री से रूस को बड़ा राजस्व मिलता है। यही राजस्व उसकी अर्थव्यवस्था और युद्ध खर्च में मदद करता है। इस कारण आलोचक यह तर्क देते हैं कि रूसी तेल खरीदना अप्रत्यक्ष रूप से युद्ध को वित्तीय समर्थन देना है। दूसरी ओर, खरीदने वाले देश तर्क देते हैं कि यह उनके राष्ट्रीय हित और ऊर्जा सुरक्षा का सवाल है।

5. नैतिकता बनाम व्यावहारिकता

इस पूरी परिस्थिति ने वैश्विक राजनीति में नैतिकता और व्यावहारिकता के बीच के अंतर को उजागर किया है।

नैतिक दृष्टि से देखा जाए तो युद्ध चलाने वाले देश को आर्थिक रूप से मज़बूत नहीं किया जाना चाहिए।

व्यावहारिक दृष्टि से देशों को अपनी जनता के लिए सस्ती ऊर्जा और स्थिर अर्थव्यवस्था सुनिश्चित करनी पड़ती है।


6. भारत का दृष्टिकोण

भारत ने इस मुद्दे पर स्पष्ट किया है कि उसका पहला दायित्व अपनी जनता और अपनी ऊर्जा सुरक्षा के प्रति है। भारत संयुक्त राष्ट्र सहित कई मंचों पर शांति की अपील करता रहा है। साथ ही, रूस और पश्चिम दोनों से संतुलित रिश्ते बनाए रखने की कोशिश कर रहा है।

7. भविष्य की राह

रूस-यूक्रेन युद्ध ने दुनिया को यह सबक दिया है कि किसी भी एक देश पर ऊर्जा के लिए अत्यधिक निर्भरता जोखिमभरी हो सकती है। इसलिए भारत सहित कई देश अब अक्षय ऊर्जा, वैकल्पिक आपूर्ति मार्ग और ऊर्जा विविधीकरण पर ध्यान दे रहे हैं।
साथ ही, अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह भी समझना होगा कि दीर्घकालिक शांति और स्थिरता तभी संभव है जब सभी पक्ष संवाद और कूटनीति को प्राथमिकता दें।




निष्कर्ष

रूस-यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक ऊर्जा राजनीति को उलट-पलट कर दिया है। भारत, चीन और अन्य देशों की भूमिका को केवल आलोचना के रूप में नहीं बल्कि व्यापक भू-राजनीतिक संदर्भ में समझना होगा। ऊर्जा सुरक्षा, कूटनीति और राष्ट्रीय हित—तीनों के बीच संतुलन बनाना आज हर देश की मजबूरी है। यही कारण है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नैतिकता और व्यावहारिकता के बीच खींचतान आगे भी जारी रहने वाली है।

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