मर्यादा पुरुषोत्तम राम

मर्यादा पुरुषोत्तम राम



हे राम! अयोध्या के प्राण, धरती के दीप,
तेरे चरणों से झुके आकाश, झुके अनंत विपुल सीप।
तू केवल राजा नहीं, न केवल कथा पुरानी,
धर्म का दीपक है तू, आत्मा की कहानी।

अन्याय जब फैला, अहंकार जब छाया,
तेरे स्वरूप ने तब सत्य का दीप जलाया।
वन की नीरवता ने तेरा गीत गाया,
नदी की धाराओं ने तुझे ही अपनाया।

तूने त्याग दिया सिंहासन, न ताज, न मुकुट,
एक वचन निभाने को छोड़ दिया सब कुछ।
हे राम! तेरी मर्यादा अनोखी है,
तेरा धर्म ही युगों का पथप्रदर्शक रोशनी है।

लंका के रण में जब रावण खड़ा,
तूने न क्रोध दिखाया, न हिंसा बड़ा।
तेरा वचन—“सत्य ही होगा विजयी”—
सदियों से गूंजता है, बन कर ध्वनि अजय।

आज जब संसार फिर अंधकार में डूबा,
भ्रम ने मनुष्य का विवेक है छूटा।
हे राम! तेरी छवि फिर चाहिए हमें,
तेरा धर्म फिर जले दीपक बने।

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