करुणामय राम

करुणामय राम



राम! मेरा श्वास, मेरा नाम,
हर धड़कन पुकारे तेरा ही धाम।
जैसे प्यासा पंछी पुकारे मेघ,
वैसे ही तेरा नाम पुकारे मेरा नेह।

ऋषियों ने तुझे गाया, वेदों ने सजाया,
करुणा के सागर ने जग को अपनाया।
अयोध्या से लंका तक फैली तेरी ज्योति,
तेरी दया से ही बंधन टूटे, हो मोक्ष की ज्योति।

शबरी की बेर तूने रस लेकर खाए,
जाति–भेद सब तेरे चरणों में ढह जाए।
कभी शत्रु को भी सुधरने का दिया अवसर,
तेरी करुणा थी अनंत, हृदय अति सुगंध भर।

वनवासी बन तू चला, वचन निभाने को,
सिंहासन त्यागा, पिता को निभाने को।
हे राम! तेरा त्याग अलभ्य महान,
मानव का पथ दिखाता सदा, तेरे नाम।

तेरी भक्ति से आँसू बनते गंगाजल,
तेरे नाम से सूखता है जीवन का जंगल।
राम! सुन ले पुकार यह साधक की,
तेरा नाम ही संजीवनी है इस आधक की।

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