श्रीकृष्ण



श्रीकृष्ण 


1. बाल्यलीला का माधुर्य

(गोपालकृष्ण के बचपन की झलक)

गोकुल की गलियों में दौड़ता श्याम,
घुँघराले केश, मुख पर मुस्कान तमाम।
मटकी के टुकड़े बिखरे इधर-उधर,
माखन लुटाता नंदलाल सुंदर।

यशोदा की आँखों में प्रेम की धारा,
बालकृष्ण ने बाँधा स्नेह का किनारा।
छोटे-छोटे पग, घुँघरू की झंकार,
गोपिकाओं के हृदय में उतरी अपार।

कभी नटखट, कभी भोला बालक,
हर लीला में छिपा ईश्वरीय झलक।
बाँसुरी की धुन में छिपा रस अनूप,
देख हँस पड़ती गगन की धूप।

गौओं के संग वन में चराते,
गोपसखाओं संग क्रीड़ा रचाते।
मोरपंखी मुकुट, कर कमल में बंसी,
दृश्य बना मानो चित्रकार की रँगसी।

ग्वालिन कहतीं – “माखनचोर आया”,
पर उनके मन का भी दुख हर लाया।
बालसुलभ हरकते छिपातीं,
मोहिनी छवि में नयन रमातीं।

कन्हैया की हँसी गूँजे आँगन-आँगन,
गोकुल में छाया पावन दिगन्त।
दूध-दही से सजी धरा की थाली,
गोपाल बने सबके जीवन की लाली।

नटखटपन में छिपा था संदेश,
हर चेष्टा में था ईश्वर का वेश।
बाल्यकृष्ण का रूप निराला,
देख हर प्राणी हो गया मतवाला।


2. रासलीला का अलौलिक रूप

यमुना-तट पर चंद्र की उजियारी,
गोपियों संग रचती रास-प्यारी।
मधुर बंसी की टेर सुनाई,
हर हृदय में उमड़ी तरंगें समाई।

गोपियाँ भूल गईं लोक-लाज,
रख दिया चरणों में सारा काज।
श्यामसुंदर संग नाचतीं रस में,
भूल गईं जग और बंधन बस में।

कहीं मंद-मंद पग, कहीं झंकार,
कहीं करकमलों से बंधे प्यार।
हर गोपी को लगा कृष्ण है पास,
हर हृदय में रच गया यह रास।

मोर मुकुट से झिलमिल किरण,
तन मन पुलकित, प्राणों में स्मरण।
धरती ने देखा वह अनुपम दृश्य,
जहाँ ईश्वर संग नाच रहा प्रत्येक हृदय।

शब्द भी मौन, गगन भी थम गया,
उस रात रास में ब्रह्मांड रम गया।
विराट चेतना का अद्भुत मिलन,
हर आत्मा संग हुआ गोविंद का संग।


3. गीता-उपदेश का दिव्य प्रकाश

कुरुक्षेत्र की रणभूमि के बीच,
अर्जुन का मन हुआ अतीव नीच।
धर्म-संघर्ष, मोह का बंधन,
उस क्षण कृष्ण ने दिया अमृत वचन।

“कर्म करो, फल की चिंता छोड़ो”,
“धर्म के पथ पर अडिग हो जोड़ो।”
शब्दों से जैसे उठा अंधकार,
जगमगाया जीवन का हर द्वार।

योग, भक्ति, ज्ञान का सार,
हर उपदेश था अद्वितीय उपहार।
शाश्वत संदेश गूँजा धरा पर,
मानवता ने पाया पथ हरपल।

विश्व-रूप का जब दर्शन कराया,
अर्जुन का संशय तिरोहित हो गया।
गीता बनी जग की आत्मा,
कृष्ण वाणी अमर ज्योति-धारा।


4. गोवर्धन-धारण की लीला

इंद्र ने जब गोकुल पर प्रलय बरसाया,
धरती जल से लबालब हो आया।
गोपालकृष्ण ने तनिक मुस्काया,
गोवर्धन पर्वत को ऊँगली पर उठाया।

गोप-गोपियाँ चकित रह गईं,
बालकृष्ण की महिमा देख हर गईं।
बरसों का अभिमान मिटा इंद्र का,
धरती पर हुआ गान गोविंद का।

आश्रय दिया सबको उस पर्वत-तले,
कृष्ण बने जीवन के रक्षक अमले।
मुस्कान लिए खड़े रहे सात दिन,
दिखाया कि ईश्वर सदा संग है हर क्षण।


5. मथुरा विजय

कंस का अत्याचार बढ़ा अपरंपार,
कृष्ण ने ठाना मिटाएँगे भार।
मथुरा पहुँचे जब वंशीधर,
धराशायी हुआ अत्याचारी अधर।

कंस के पाप का हुआ अंत,
धरती ने लिया नया संतुलन।
गगन गूँजा, वेदों ने गाया,
“कृष्ण ने धर्म का ध्वज लहराया।”


6. भक्त-सुदामा की कथा

गरीब सुदामा पहुँचे द्वारकाधीश,
मन में संकोच, आँसू नवीश।
कृष्ण दौड़े आलिंगन में भरने,
दीन-हीन को अपने हृदय में करने।

अन्नहीन थैले में चावल थे थोड़े,
पर सखा के प्रेम ने मोती गढ़े।
कृष्ण ने सब स्वीकार किया,
सुदामा का घर स्वर्ग बना दिया।


7. मीरा का विरह-प्रेम

मीरा ने माना श्याम को प्राण,
हर श्वास में गूँजा उनका गान।
दुनिया ने चाहा बंधन में रखना,
पर कृष्ण-मोह ने दिया मुक्ति का सपना।

मिट गए भेद, जग के नियम,
मीरा डूबीं केवल हरि-स्मरण।
कृष्ण के चरणों में पाया विश्राम,
भक्ति बनी जीवन का परम धाम।


8. कृष्ण का करुणा रूप

भक्तों के आँसू पोंछते हरदम,
कभी बने सखा, कभी गुरुवर संग।
अन्याय मिटाने अवतरित हुए,
धर्म-रक्षा के पथ पर अग्रसर हुए।

गोपियों के दुःख हरते हँसी में,
सुदामा को धन देते बसी में।
हर रूप में करुणा का सागर,
श्यामसुंदर हैं मोक्ष का आगार।


9. विश्वरूप का अद्भुत दर्शन

विस्तृत गगन में, अनगिनत रूप,
हर ओर दिखा विराट स्वरूप।
सूर्य चंद्र, दिशाएँ समाई,
अर्जुन ने देखा अनंत परछाई।

भय और भक्ति का संगम वहाँ,
कृष्ण प्रकट हुए ब्रह्मांड समा।
जिसे देख अर्जुन नत हो गए,
वह दृश्य युगों तक अमर हो गए।


10. पूर्ण समर्पण की प्रार्थना

हे माधव, हे जग के स्वामी,
तेरे बिना जीवन है अधूरा नामी।
हर साँस तुझमें विलीन हो जाए,
तेरे चरणों में मन शरण पाए।

भक्ति की गंगा बहती रहे,
तेरे नाम का स्मरण रचता रहे।
जन्म-जन्मांतर तेरा ही हो साथ,
मुक्ति मिले तुझसे, यही है बात।

तेरे बिन संसार शून्य लगे,
तेरी वाणी ही जीवन जगे।
कृष्ण! हमारे हृदय में सदैव रहो,
हर श्वास में हरि-नाम बसे रहो।



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