अमेरिका और टैरिफ आतंकवाद : वैश्विक व्यापार पर नया हथियार


अमेरिका और टैरिफ आतंकवाद : वैश्विक व्यापार पर नया हथियार

प्रस्तावना

अमेरिका ने खुद को हमेशा मुक्त व्यापार, वैश्वीकरण और आर्थिक उदारीकरण का पैरोकार बताया है। वह विकासशील देशों को भी यही उपदेश देता है कि खुले बाज़ार और प्रतिस्पर्धा ही प्रगति का मार्ग हैं। लेकिन जब उसकी घरेलू कंपनियों या राजनीतिक हितों पर असर पड़ता है, तो वही अमेरिका अचानक भारी शुल्क, प्रतिबंध और दंडात्मक नीतियों का सहारा लेने लगता है। यही नीति आज “टैरिफ टेररिज़्म” यानी शुल्क आतंकवाद के नाम से जानी जा रही है।



शुल्क आतंकवाद क्या है

जब कोई बड़ा देश व्यापारिक विवाद या राजनीतिक दबाव बनाने के लिए दूसरे देशों से आने वाले सामानों पर अचानक बहुत ऊँचे आयात शुल्क लगा देता है, तो इसे शुल्क आतंकवाद कहा जा सकता है। यह व्यापार संतुलन सुधारने के बजाय, दूसरे देश की अर्थव्यवस्था पर दबाव बनाने का एक हथकंडा होता है।




अमेरिका की दोहरी नीति

1. मुक्त व्यापार की वकालत लेकिन संरक्षणवाद की नीति – अमेरिका WTO, IMF और विश्व बैंक जैसे मंचों पर व्यापार उदारीकरण की बात करता है, लेकिन स्टील, एल्युमिनियम, सौर पैनल, तकनीकी उपकरण या कृषि उत्पादों पर भारी आयात शुल्क लगाकर खुद के उद्योगों को बचाता है।


2. चयनात्मक दबाव – जिन देशों के साथ राजनीतिक मतभेद होते हैं (जैसे चीन, भारत, तुर्की), उन पर टैरिफ बढ़ा दिए जाते हैं। लेकिन जिन देशों से सामरिक या आर्थिक फायदा है, उनके लिए छूट जारी रहती है।






भारत पर असर

भारत जैसे देशों ने अमेरिका के टैरिफ आतंकवाद का कई बार सामना किया है:

इस्पात और एल्युमिनियम पर अतिरिक्त शुल्क

व्यापार में प्राथमिकता देश (GSP) का दर्जा हटाना

फार्मा, आईटी और कृषि उत्पादों पर नए गैर-टैरिफ अवरोध
इससे भारतीय उद्योगों को नुकसान हुआ और निर्यातकों की लागत बढ़ गई।




वैश्विक व्यापार व्यवस्था पर खतरा

टैरिफ आतंकवाद केवल किसी एक देश को नहीं, बल्कि पूरी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित करता है। इससे

व्यापार युद्ध तेज़ होते हैं

छोटे देशों पर दबाव बढ़ता है

वैश्विक निवेशक अनिश्चितता में रहते हैं

उपभोक्ताओं के लिए कीमतें बढ़ती हैं





डब्ल्यूटीओ की भूमिका और सीमाएं

WTO के नियम बड़े देशों के लिए भी बाध्यकारी होने चाहिए, लेकिन अमेरिका ने कई बार WTO के फैसलों को मानने से इनकार किया या अपीलीय प्राधिकरण को ही ठप कर दिया। इससे बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था कमजोर होती है और “बड़े का कानून” चलने लगता है।



विकल्प और रास्ता

दक्षिण-दक्षिण सहयोग – विकासशील देशों को आपसी व्यापार बढ़ाकर अमेरिकी दबाव से बचना चाहिए।

बहुपक्षीय मंचों को मजबूत करना – WTO और क्षेत्रीय समझौतों को निष्पक्ष बनाना जरूरी है।

तकनीकी व विविधीकरण – भारत और अन्य देशों को अपने निर्यात बाजार और तकनीक का विविधीकरण करना चाहिए ताकि किसी एक देश पर निर्भरता कम हो।





निष्कर्ष

टैरिफ आतंकवाद अमेरिका के लिए अल्पकालिक राजनीतिक हथियार हो सकता है, लेकिन यह वैश्विक व्यापार व्यवस्था की नींव हिला देता है। यदि अमेरिका सच में मुक्त व्यापार और निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा का समर्थक है तो उसे शुल्क आतंकवाद जैसी नीतियां छोड़नी होंगी। अंतरराष्ट्रीय व्यापार आपसी सहयोग और संतुलन पर चलता है, दबाव और धमकी पर नहीं।

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