"मैं फिर भी लिखूँगा"
"मैं फिर भी लिखूँगा"
क्या ही मरूँगा मैं,
कभी नहीं मर सकता मैं।
मैं सोचता हूँ,
और सोचूँगा ही।
वो एक दिन समझ ही जाएगी,
चाहे मैं बोलूँ या न बोलूँ,
लिखूँ या न लिखूँ।
तू जा,
चली जा...
मैं फिर भी लिखूँगा।
पहले तुझसे मिलने पर लिखता था,
अब तुझसे बिछड़ने पर लिखूँगा।
पहले तेरी हँसी पर कविता बनती थी,
अब तेरी खामोशी पर शेर होगा।
पहले तेरे साथ होने पर लफ़्ज़ खिलते थे,
अब तेरे बिना भी ग़ज़ल लिखूँगा।
मैं अपने दर्द को काग़ज़ पर गिराऊँगा,
और स्याही को आँसुओं में घोल दूँगा।
तू दूर सही,
पर मेरी हर पंक्ति में तेरा नाम रहेगा।
कभी मेरी नज़्म पढ़ना —
तुझे तेरी तस्वीर नज़र आएगी,
और शायद तुझे भी यक़ीन होगा
कि मैं तुझसे बिछड़कर भी
सिर्फ़ तुझे ही लिख रहा था।
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