अंतिम यात्रा : ज़ुबीन गर्ग को श्रद्धांजलि
अंतिम यात्रा : ज़ुबीन गर्ग को श्रद्धांजलि
23 सितम्बर 2025 का दिन असम और भारत के लिए शोक का दिन बन गया। ज़ुबीन गर्ग का पार्थिव शरीर जब गुवाहाटी पहुँचा तो हज़ारों लोग उमड़ पड़े। हर चेहरे पर आँसू थे, हर गले में उनकी धुनें गूंज रही थीं।
जनसमुद्र में अंतिम दर्शन
सारुसजाई स्टेडियम में उनके पार्थिव शरीर को आमजन के दर्शन के लिए रखा गया। सुबह से लेकर देर रात तक लोग कतारों में खड़े होकर उन्हें अंतिम बार देखने आते रहे। फूलों की वर्षा होती रही, और हर कोई अपने तरीके से “ज़ुबीन दा” को विदा कर रहा था।
कामरकुची में अंतिम संस्कार
अगले दिन उनका अंतिम संस्कार गुवाहाटी के निकट कामरकुची गाँव में राज्य सम्मान के साथ किया गया। असम पुलिस ने उन्हें सलामी दी। उनकी बहन पाल्मी ने मुखाग्नि दी और पत्नी गरिमा सैकिया गर्ग अश्रुपूरित नज़रों से अपने जीवनसाथी को विदा करती रहीं। पूरे वातावरण में केवल एक ही ध्वनि गूंज रही थी — उनकी अमर धुनें।
संगीत और श्रद्धांजलि
हज़ारों प्रशंसक उनके शव यात्रा के साथ-साथ गा रहे थे—“मायाबिनी” और उनके अन्य प्रिय गीत। मानो उनके सुर हवा में विलीन हो गए हों और वही उनकी असली विदाई का स्वर बन गया हो।
नेताओं और जनता की उपस्थिति
मुख्यमंत्री से लेकर सांस्कृतिक जगत के तमाम लोग वहाँ उपस्थित थे। लेकिन उस भीड़ में असली तस्वीर थी—साधारण लोग, किसान, छात्र, महिलाएँ, बच्चे—जो अपने प्रिय गायक को अलविदा कहने आए थे।
सामूहिक शोक और संदेश
यह अंतिम संस्कार केवल एक रस्म नहीं था। यह पूरे असम का शोक, श्रद्धा और कृतज्ञता का संगम था। ज़ुबीन गर्ग के जाने से जो शून्य बना है, उसे कोई भर नहीं सकता। पर उनकी आवाज़, उनका संगीत, उनकी पहचान और उनकी धरोहर आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।
निष्कर्ष
ज़ुबीन गर्ग का जीवन और उनकी अंतिम यात्रा दोनों हमें यह सिखाते हैं कि सच्चा कलाकार केवल मंच पर नहीं जीता, वह लोगों के दिलों में बसता है। उनके गीत समय से परे हैं और उनकी स्मृतियाँ पीढ़ियों तक अमर रहेंगी।
वे अब भले ही हमारे बीच न हों, पर हर धुन, हर सुर, हर गमक में उनकी आत्मा गूंजती रहेगी।
ज़ुबीन दा अमर रहें।
🙏🙏
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