ज्ञानमेव मोक्षः


ज्ञानमेव मोक्षः

नित्यं प्रकाशरूपं ज्ञानं,
निरवच्छिन्नं, अनाद्यन्तं,
यत् ब्रह्मस्वरूपं,
यत् सर्वभूतहृदयस्थितम्।

न जातिः, न वर्णः, न धर्मः,
न पन्थाः, न मतभेदः —
ज्ञानाग्नौ सर्वं विलयं याति।
यत्र सर्वं समं दृश्यते,
यत्रात्मा आत्मनि लीयते।

ज्ञानदीपः प्रज्वलितो हृदये,
अविद्याअन्धकारं छिन्दति;
नश्यन्ति तत्र
मोहमाया, द्वेषरागः,
अहमिति भ्रान्तिः।

सत्यं ज्ञानं अनन्तं शिवं,
यः पश्यति, स मुक्तो भवति।
यत्र न ‘मैं’, न ‘तुम’,
न उच्चं, न नीचं,
सर्वं तत्त्वमसि इति प्रत्यक्षं भवति।

यः ज्ञानी स धर्मातीतः,
स संप्रदायातीतः,
स बन्धनातीतः,
स सर्वत्र समदर्शी।
तस्मै भूमिः माता, गगनं पिता,
सर्वे भूताः भ्रातरः।

ज्ञानस्नानं कृत्वा
पवित्रं भवति अन्तःकरणम्,
निमज्ज्य ज्ञानसरोवरे
भवदुःखं क्षीयते।
यः वेत्ति आत्मानं,
स ब्रह्मभूतः।

ऋतम्, सत्यम्, अनन्तम्,
यदा हृदि उदेति ज्ञानज्योतिः
तदा लीयते समस्त संकल्पः।
न बन्धनं, न विमुक्तिः,
न साधकः, न साध्यं,
केवलं ब्रह्मैकं एव शेषम्।

हे साधक,
मुनिव्रतं समाश्रित्य,
शमदमादिभिः मनः शुद्ध्य,
ज्ञानमार्गं अनुगच्छ।
नित्यं चिन्तय आत्मतत्त्वम्,
नित्यं स्मर अद्वयबोधम्।

ज्ञानमेव हि जीवनस्य सारः,
ज्ञानमेव हि मोक्षस्य द्वारम्,
ज्ञानमेव परमं तपः।
यदा हृदयगगने
ज्ञानचन्द्रः उदेति,
तदा न पुनरन्धकारः।

ज्ञानाग्निना दहति पापानि,
ज्ञानजलेन शमयति तृष्णाम्,
ज्ञानवायुनाऽपोहति मोहम्,
ज्ञानसूर्येण प्रकाशते मार्गः।

एवं विदित्वा
न भवसागरं तरितुं कठिनं,
न द्वेषद्वन्द्वं वहितुं कठिनं।
सर्वं आत्मनि, आत्मा सर्वेषु,
सर्वं ब्रह्मेति दृढनिश्चयेन
शान्तं भवति चित्तम्।

ज्ञानमेव मोक्षः,
ज्ञानमेव मुक्ति,
ज्ञानमेव परं धाम।
यत्र न किञ्चिदस्ति,
न च किञ्चिदभावः,
तत्रैव विश्रान्तिः परमामृतस्य।



कविता का भावार्थ / व्याख्या

ज्ञान की महिमा
कविता का मुख्य संदेश है कि सच्चा ज्ञान ही मुक्ति देता है। जब भीतर ज्ञान का दीपक प्रज्वलित होता है तो अज्ञान, भ्रम, द्वेष, राग और मोह स्वतः समाप्त हो जाते हैं।

जाति–धर्म से परे
ज्ञान पाने वाला व्यक्ति जाति, धर्म, पंथ, संप्रदाय जैसी बाहरी सीमाओं को पार कर जाता है। उसके लिए सब समान हो जाते हैं — उच्च या नीच का भेद मिट जाता है।

ब्रह्म का अनुभव
सच्चे ज्ञान में व्यक्ति यह जान लेता है कि “सभी में वही एक चेतना है।” यह वही उपनिषद का “तत्त्वमसि” या “अहं ब्रह्मास्मि” भाव है।

मुक्ति का सार
ज्ञान ही वह स्नान है जो मन को पवित्र करता है; ज्ञान ही वह आग है जो पाप और मोह को भस्म करती है; ज्ञान ही वह प्रकाश है जो मार्ग दिखाता है।

साधक के लिए संदेश
साधक से कहा गया है — शम (मन की शांति), दम (इंद्रियों का संयम), और वैराग्य को अपनाओ। आत्मतत्व पर ध्यान करो। यही सबसे बड़ा तप है।

परम अवस्था
अंत में कवि कहता है कि जब ज्ञान पूर्ण हो जाता है तब न साधक बचता है, न साध्य; न बंधन रह जाता है, न मुक्ति — केवल ब्रह्म का प्रकाश रह जाता है। यही परम विश्राम और अमृत की अवस्था है।

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